हर साल मेरी कक्षा में नए बच्चे आते हैं,
कई अबोध चहरे उस सूने कमरे में भर जाते हैं।
कुछ ही दिनों में वह सभी आपस में मित्र बन जाते हैं,
फिर पूरे दिन बातें कर कर के, वह कितना शोर मचाते हैं।
अपनी नटखट शरारतों से नित्य मुझे सताते हैं,
फिर भी यह बच्चे मेरे मन को बहुत भाते हैं।
सीखने की चाह लिये,
मन में नित्य नया उत्साह लिये।
नयनों में निश्चल अबोधता,
मुख पर प्रसन्न चंचलता।
सूर्य कहाँ से उगता है,
और कहाँ से ढलता है?
हमें सत्य क्यूँ बोलना चाहिए,
बुरी आदतें क्यूँ छोड़नी चाहिए?
कहाँ देश विदेश है,
परियों का कहाँ प्रदेश है?
भगवान कहाँ रहते हैं,
क्या खाते हैं क्या पीते हैं?
कुछ सरल, कुछ रहस्यमयी,
उफ, ये प्रश्न खत्म ही नहीं होते हैं!
उनके प्रश्नों का उत्तर देकर,
मैं अपनी परीक्षा देती हूँ।
यदि उस में सफल हो सकी,
तभी उनकी परीक्षा ले सकती हूँ।
मेरा लक्ष्य केवल उन्हें साक्षर नहीं बनाना है,
उनके अंतर्मन के संस्कारों को भी जगाना है।
अनुशासन का पाठ पढ़ाने हेतु,
मुझे कभी कभी कठोर होना पड़ता है।
प्रेम भले भीतर से हो,
ऊपर से क्रोध दिखाना पड़ता है।
फिर भी, उन्हें दण्डित करने में,
कितनी कठिनाई होती है।
भयभीत वह हो जाते हैं,
पर पीड़ा मुझ को होती है।
वह चाहे कितनी भी भूल करें,
मुझे क्षमा करना ही है।
वह चाहे कभी अधीर हों,
धैर्य मुझे रखना ही है।
आखिर क्षमा, दया और करुणा का पाठ उन्हें मुझसे ही तो सीखना है।
पहले हर एक कार्य को,
वह असम्भव बतलाते हैं।
फिर धीरे धीरे
प्रयास करने को तैयार हो जाते हैं।
कई बार असफल हो कर
एक दिन सफल हो जाते हैं,
असम्भव को सम्भव करने का,
साहस तब दिखलाते हैं।
वह क्षण मेरे जीवन के गौरव के क्षण होते हैं।
पर इसका अर्थ यह नहीं,
कि सिर्फ में ही उन्हें सिखाती हूँ।
जितना उनको देती हूँ,
उस से कई अधिक कुछ पाती हूँ।
बचपन की सहज निर्मलता,
जो आयु नष्ट कर जाती है।
सदा बच्चों से घिरे रहने में,
वह कुछ तो जस की तस रह पाती है।
पहले सप्ताह ,
फिर महीने बीतते हैं।
समय के साथ,
वह बच्चे मेरे दिल के और भी निकट हो जाते हैं।
परीक्षा में जब वह ,
अच्छे अंक लाते है।
या किसी प्रतोयोगिता में,
विजयी होकर आते हैं।
मुझ से प्रशंसा पाने के लिए
जिस तरह ललचाते हैं,
शिक्षक दिवस पर मेरे प्रति
जो स्नेह और आदर दर्शाते हैं,
वर्ष बीतने पर ये सब,
मुझे बहुत याद आते हैं।
जब कभी मेरी याद,
उन्हें पुनः मेरे पास खींच लाती है,
उनकी यही अठखेलियां,
हम दोनों के लिए सुखद स्मृति बन जाती है।
©अनंता सिन्हा
सन 2014
ऑडियो:- भारती आंटी साभार।
Superb poem...being just a student, you have understood the emotions of your teachers so well...I feel so proud to read ur poems..blessed to be your teacher........with love Bina
ReplyDeleteVery sweet one.
ReplyDeleteWell written! Being a teacher I can connect with your poem. God bless you..... Claire Sarkar
ReplyDeleteअपने स्नेह व आशीष के लिए आपका धन्यवाद आंटी। ज़रूर आती रहिएगा और साथ ही साथ मुझे फॉलो भी कीजिये, इससे आपको मेरे नए पोस्ट की जानकारी मिलती रहेगी।
DeleteA very well written poem Ananta. Keep it up beta
ReplyDeleteYour thoughts are so matured and have so much of depth, yet they are beautifully worded with simplicity and a smooth flow!
ReplyDeleteYou are a blessed child Ananta!
Wish you achieve greater heights... Navita
Zindagi bahut choti hai sikhane k liye.......good luv you kid
ReplyDeleteVery well written dear Ananta ❤️ कुछ भी और कोई भी अभिव्यक्ति छोड़ी नहीं। माँ जैसा स्नेह देती अध्यापिका... This should be circulated among today's teachers, who are unfortunately missing the kind of love that you have expressed in your poem. शायद यह पंक्तियाँ उन्हें और स्नेहमय बना जाएं 🙏
ReplyDeleteOnce again, my love and blessings 😗
Bharti aunty
Ananta, Kitni sundarta aur gehrayi se tumnein ek adhyapak ke jeewan aur bhawnaon ko vyakt Kiya hai...dhanya hai wah har guru jiski tum shishya ho🙏
ReplyDeleteIt's brilliant work Ananta! I loved the structure and the rhythm of the poem where the attitude or mood has a song like cadence and rhyme.
ReplyDeleteKeep up the good work girl and continue writing...God bless!!😘❤️
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
क्या!!!!!!!😃😃😃😅😅 आपका बहुत बहुत आभार।
Deleteयह तो आपने मुझे बैठे बिठाये सुखद आश्चर्य दे दिया। परन्तु मैम, यह कब हुआ और कैसे?।
मुझे बहुत प्रसन्नता है कि आपको मेरी रचना इतनी पसन्द आयी।आप इसी प्रकार अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा। मैं ज़रूर आऊँगी।
परन्तु यह तो बताइए कि मेरी कौन सी रचना साझा हुई है। जिस पर अपने कमेंट किया है वो या कोई और?
धन्यवाद सहित,
अनंता
🌹🌺🌻🌼💐🌷🥘🎂🎂🎂
ReplyDeleteसुखद सार्थक भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपका हृदयसे आभार है मैम। स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा और आती रहिएगा।
Deleteआप सबका प्रोत्साहन व स्नेह मिला, इसके लिए अत्यंत कृतज्ञ हूँ।
व्वाहहहह,
ReplyDeleteगुरु को सादर नमन..
अनन्तकाल तक लिखती रहें..
शुभकामनाएँ..
सादर..
आदरणीया मैम, आपके इतने प्यारे से आशीष के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteफॉलोवर गैजेट लगा हुआ है। यदि आप मुझे फॉलो करेंगी तो मैं आभारी रहूंगी। बहुत बहुत आभार।आप सभी बड़ों का आशीष व प्रोत्साहन मेरी ऊर्जा है। हृदय से आभार।
ब्लाग फालोव्हर का गैजेट लगाइए
ReplyDeleteसाभार, सादर..
Bahut DHAAANSU kavita hai. Jai Ho.
ReplyDeleteकमेंट भी बड़ा धांसू है। धन्यवाद।
Delete"मेरा लक्ष्य केवल उन्हें साक्षर नहीं बनाना है,
ReplyDeleteउनके अंतर्मन के संस्कारों को भी जगाना है।" .. बेहतरीन सोच .. इस सोच से हम कल के भारत को तो कम से कम बेहतर बना सकते हैं .. शायद ...
【 कुछ टंकण अशुद्धियाँ (typoerror) सुधार लें - चेहरे, फिर (एक जगह), कि, मैं, समय के (जो गलती से समय जे हो गया है) 】
आदरणीय सर,
Deleteइतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार। टंकण अशुद्धियां सुधार ली हैं। ध्यान आकर्षित करने के लिये हृदयसे आभार।आपका प्रोत्साहन व आशीष पा कर बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।
प्रिय अनंता . आपके ब्लॉग पर आकर आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा | आपका प्रयास सराहनीय और सुकोमल भाव बहुत मर्मस्प्रशी हैं | लिखते रहिये |साहित्य को आप जैसे युवाओं और नव हस्ताक्षरों से बहुत आशाएं हैं | खूब लिखिए और खुश रहिये | हार्दिक प्यार और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteआपके प्यार भरे आशीष के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि मुझे आप सबों का प्रोत्साहन मिल रहा है। कृपया मेरे ब्लॉग पर आती रहिएगा। मैं और भी रचनाएँ डालती रहूंगी।
Beautifully expressed the emotions that a teacher goes through in relation to her young students who come for learning from her but in the journey of teaching she herself many a times learns from them!!
ReplyDeleteमेरी ऑल टाइम पंखा,
Deleteधन्यवाद
मैम नहीं दीदी कहिए..
ReplyDeleteसादर..