परस्पर स्नेह की अमृत- धारा,
इस जग में जहाँ बह जायेगी।
क्षमा, दया और करुणा ,
वहाँ स्वतः चली आएगी।
अपरिचित को अपरिचित से ,
सहायता सुलभ मिल जायेगी।
असहाय और दीन भावना,
स्वतः नष्ट हो जायेगी।
स्नेह की अमृत धार पा कर ,
रोगी भी स्वस्थ हो जाएँगे।
बंदीगृह मनोचिकित्सालय ,
युद्ध-क्षेत्र खाली हो जाएँगे।
स्नेह भाव से ओत - प्रोत,
मनुष्य हिंसा नहीं कर पायेगा।
करुणा और क्षमा-शीलता से परिपूर्ण,
ह्रदय क्रोध पर विजय पा जाएगा।
स्नेह के कारण कण कण में,
भगवंत समा जाएँगे।
मंदिर - मस्जिद जाए बिना ही,
ईश्वर मिल जाएँगे।
स्नेह के वश माँ भगवती भी,
पुकार सुन दौड़ी आएँगी।
हो स्नेह-पूर्ण हृदय हमारा,
पत्थर की मूरत भी मुस्कायेगी।
स्नेह-रूपी जल से,
क्रोधाग्नि बुझ जायेगी।
मधुरता का वास होगा ,
कटुता न स्थान ले पाएगी।
अतिशय स्नेह के कारण
पाषाण पिघल जाएँगे।
मरणासन्न उठ खड़े होंगे ,
निर्जीव जीवित हो जाएँगे।
स्नेह की अमृत -धार जहाँ ,
वहाँ त्याग आ जायेगा।
मुझ को तुम से अधिक मिले,
यह लोभ मिट जाएगा।
भूमि , धन और सत्ता के लिए ,
रक्तपात बंद हो जाएगा।
मानवता का मानवता से,
अटूट संबन्ध जुड़ जाएगा।
बड़ी से बड़ी कमी भी,
स्नेहामृत से पूरी हो जायेगी।
स्नेहामृत की जीवन दायनी धारा ,
पूर्णता को परिपूर्णता दे जायेगी।
©अनंता सिन्हा
12.10.2014