हे वर्षा रानी आओ ,
आ कर अपना शीतल जल बरसाओ।
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न कोई फांके से।
क्यूंकि जो तुम न होगी ,
खेतों में फसलें नहीं उगेंगी,
लोहड़ी - बैसाखी नहीं मनेगी।
नदियों में पानी न होगा,
सूखा कंठ तृप्त न होगा,
अशांत मन शीतल न होगा।
खाने को रोटी न होगी ,
शरीर में पुष्टि न होगी,
कागज़ की किश्ती न होगी।
सावन का शुभ मास न होगा,
इच्छापूर्ति का विश्वास न होगा,
दुखी मन में उल्लास न होगा।
गणेश पूजा के उत्स्व न होंगे ,
वर्षा के नृत्य न होंगे,
उपवन में न मयूर नाचेंगे,
बालक चंचल नहीं रहेंगे।
न राखी में रक्षा की आशा ,
न दीपावली में खील बताशा ,
होली का त्यौहार न होगा ,
तुम बिन जीवन का कोई सार न होगा।
आने की दया हमेशा करना,
अकाल का संताप न देना ,
अनावृष्टि का शाप न देना।
लेकिन हे जीवन दायनी ,
मेरी यह भी विनती है तुमसे।
होना न कभी इतनी प्रचंड,
पुनः खंड- खंड हो उत्तराखंड।
नदियों में उफान आ जाए ,
घर- गृहस्ती नष्ट हो जाए।
थल भी जल में मिल जाये ,
जन-जीवन का लय हो जाये।
श्रध्दालु जो तीर्थ स्थल जाएँ ,
पुनः वहां से लौट न पाएँ ,
फिर कोई शिव प्रतिमा बह जाये।
माना कि बाढ़ लाने में ,
हमारा ही दोष है ,
जो मरते हैं , वो निर्दोष हैं।
अनाथ होते बच्चे अबोध हैं ,
असहाय- अपंग निर्दोष हैं।
पशु पक्षी सदा अबोध हैं ,
अन्न उपजाता किसान निर्दोष है।
इसलिए हे पालन हारिणी,
तुम सदा पालन हारिणी ही रहना।
कि सभी तुम्हारी महिमा गाएँ ,
किसी महा विध्वंस का कलंक न कोई तुम पर लगाए।
©अनंता सिन्हा
24/10/2020