Thursday, May 6, 2021

भ्रष्टाचार





कहीं नहीं है शुद्ध और साफ़,
लोगों का व्यवहार।
हर तरफ़ फैला है,
भ्रष्टाचार-ही-भ्रष्टाचार।

रोक रहा होने से 
जनता के सपने साकार,
काले भ्रष्टाचार का हाहाकार।

कहाँ गए वे नियम, वे कानून,
जो संविधान ने बनाये थे?!
उन्होंने जनता के पैसे,
खाने नहीं सिखाये थे।

हमारे शहीदों ने कहा,
एक हैं सभी प्रान्त, सभी धर्म।
पर अकारण मतभेद करने में,
आती नहीं हमें शर्म।
 
नेता डालते हैं
सभी धर्मों में फूट 
और बात-बात में बोल कर झूठ,
लेते आम जनता को लूट।

हर चुनाव में होते वादे
कभी भी पूरे किए न जाते।
साल-साल कर बढ़ता जाता,
सदा पिस जाता है करदाता।  

मनुजता जूझ रही मृत्यु से,
देश को   लील रही  महामारी।  
फिर भी इनको सूझ रही,
साँसों की कालाबाज़ारी। 

सत्यमेव जयते की भू पर,
आज सत्य रहा है हार।
भ्रम में जीता  आम- आदमी,
लुटते जनता के अधिकार ।   

हर तरफ़ बढ़ती महंगाई,
पर कृषि मंत्री से पूछो,
तो उन्हें अब तक समझ न आई।
वे कहते हैं " क्या मैं ज्योतिषी हूँ?
जो महँगाई कब कम होगी,
ये बताता फिरूँ।
 

यह तो देश की सरकार का हाल है,
और जनता बेहाल है ।

पर मित्रों,

कम से कम तुम तो रखो,
अमर जवान ज्योति की लाज।
भ्रष्टाचार के खिलाफ,
उठाओ आवाज़।

इससे हम सब का भविष्य होगा उज्जवल,
  आने वाले भारत को मिलेगा,
एक नया कल।

अनंता सिन्हा

06/05/2021

 


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