उत्सव की भोर सुनहरी आई ,
संग संक्रान्ति पर्व है लायी।
ओढ़े धरा चुरनिया धानी,
खेतों में फसलें लहलहाईं।
जिसने सही धुप और छाया,
माटी से मोती उपजाया,
उस किसान को शीश झुकाएँ ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ।
खिचड़ी, घी ,तिलकुट, पापड़,
खाएँ भोजन सात्विक सुँदर।
तन-मन की तुष्टि पाएँ ,
अन्न ही ईश यह भाव जगाएँ।
भूखे पेट न कोई जाए
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ ।
खेतों में चौपाल सजाएँ ,
आग तापें , गप्पें लड़ाएँ।
झूम- झूम कर भंगड़ा नाचें ,
प्रियजनों संग खुशियाँ मनाएँ।
लोहड़ी का आनंद उठायें ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ।
अग्नि में करें तिल अर्पण ,
एक-दूजे को तिल -गुड़ खिलायें।
करें सब का मुँह मीठा ,
हर रिश्ते में मिठास आए।
आपसी बैर भूल सभी ,
प्रेम का पावन पर्व मनाएँ ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ।
ढपली बजा कर बीहू नाचें ,
साल का पहला पर्व मनाएँ।
सूखे घास का कुटीर बना ,
वंदन -वार से उसे सजाएँ।
पकवानों का भोग लगा,
संग बैठ भोगाली पाएँ ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाये।
खुशियाँ बाटें , दुःख भूल सभी ,
अग्निदेव की स्तुतियाँ गाएँ ,
उनके नाम की मेजी जला कर ,
उनसे ऊर्जा ऊष्मा पाएँ।
भोग से भक्ति की यात्रा ,
नवजीवन का पर्व मनाएँ ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ।
क्षीर भरी पोंगल छलके ,
घर -घर शुभ-लाभ छलकाए।
कर सूर्यदेव को पोंगल अर्पण ,
सभी मिल कर प्रसाद पाएँ ।
भरे घर-भंडार सभी के ,
सुख- समृद्धि घर -घर छाये ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ ।
उमंग -भरे छत पर आयें ,
रंग-बिरंगी पतंग उड़ाएँ।
दें छोटों को प्यार ,
बड़ों से आशीष पाएँ।
ग्लानि चिंता भय त्यागें ,
मुक्ति का पावन पर्व मनाएँ ,
आओ मिल संक्रान्ति मनाये।
अनेकता में एकता का संगम ,
मेरा भारत देश अनुपम।
एक साथ त्यौहार मना कर ,
विविधता का आनंद उठायें।
जुड़ कर भारत की मिट्टी से ,
भारतीय होने का गौरव पायें
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ।
© अनंता सिन्हा
१३ /०१/२०२०१