किसी के मन पर आघात हुआ,
क्या वह सच्चा परिहास हुआ?
करे नष्ट किसी का स्वाभिमान,
क्या सच्ची होगी वह मुस्कान?
नित्य नया परिहास हो,
पर सदा निर्मल रहे।
ईर्ष्या, निन्दा या छल से भर कर,
नहीं किसी का उपहास बने।
वाणी में व्यंग्य न इतना घुले,
लज्जा से किसी का शीश झुके।
किसी का आत्मविश्वास टूटे,
या किसी का धैर्य छूटे।
कोई कुस्मृति याद आ जाए,
मन अवसाद से घिर जाए।
किसी के मन में ग्लानि भरे,
या किसी की एकाकी बढ़े।
परिहास सदा इतना सुख दे,
किसी रोगी को स्वस्थ करे।
किसी की चिंता हरण करे,
किसी का मन आश्वस्त करे।
किसी की भूल सुधारे,
ग्लानि न दे,
किसी अकेले की एकाकी हरे ।
किसी शत्रुता का नाश करे,
किसी मित्रता को आबाद करे।
सदा ऐसा विनोद हो,
किसी के नयन न नीर भरे।
इतना निश्छल हर हास्य हो,
कि सब के मन मुस्कान भरे।
© अनंता सिन्हा