दूर कहीं एक शिला को, मुक्ति की प्रतीक्षा थी।
बरसों बाद सूनी डाली पर,
ज्यों पक्षी ने गीत सुनाया था।
अहिल्या के उद्धार का,
समय सुहावन आया था।
काले घनघोर अंधेरे में,
दीपक के उजियारे थे।
विश्वामित्र गुरु के संग,
लक्ष्मण राम पधारे थे।
मिथिलापुरी के पथ पर,
प्रभु चलते चलते ठिठक गए।
वर्षों वीरान उपवन का,
रहस्य गुरु से पूछ लिए।
"हे गुरुवर, इस स्थल को देख,
मेरा मन आकुल होता है।
मौन अश्रुपात किसी का,
उर को व्याकुल करता है।"
"तीरथ सा पावन यह आश्रम,
कैसे यूँ वीरान है?
एक तुलसी ही जीवंत,
बाकी सब निष्प्राण है।"
"पर्ण कुटी के प्रांगण में,
पड़ी शिला यह कैसी है?
साधक की है अटूट समाधि,
या प्रतिमा देवी की है?"
गुरुवर बोले "हे राघव,
यहाँ ताप क्रोध का रहता है,
वासना की बलि चढ़ी,
नारी का सन्ताप यहाँ रहता है।"
"राम सुनो, यह शिला नहीं,
सती गौतमी अहिल्या है।
सम्पूर्ण नारी जाति की,
यह मूर्तिमान तपस्या है।
"शिला बनी इस सुपुनीता को,
तुमसे ही अब आशा है।
श्राप का विष पीती पतिता को,
तुम्हारे चरणों की अभिलाषा है।"
गुरु के वचनों को सुन,
असमंजस में राम पड़े।
माता - रूपिणी देवी पर,
कैसे अपने पाँव धरें।
रघुवर यह विचार रहे थे,
कि शिला से ध्वनि हुई।
वर्षों की मौन तपस्या,
अनायास ही बोल उठी।
"हे भगवन! सब ने मुझ पर,
यथा - योग्य प्रहार किया।
इंद्र ने उपभोग बनाया,
पति ने भी शाप दिया।"
"फिर चरण शीष पर धरने से,
आप क्यूँ सकुचाते हैं?
क्या मुझे शापमुक्त करने से,
आप भी कतराते हैं?"
"तो फिर राम, यह काम करो,
मुझे शिला ही रहने दो।
विनती है एक यही,
मेरे प्रश्नों का उत्तर दो।
"दोष लगाया स्वामी ने,
मैं ने पर - पुरुष नहीं पहचाना।
त्रिकाल - दर्शी हो कर भी,
क्यूँ उन्होंने इंद्र आगमन न जाना।
"क्यूँ पूर्ण - समर्पित हो कर भी,
नारी त्याज्य हो जाती है?
तन मन अर्पण करके भी,
तुच्छ मानी जाती है?"
"कभी परीक्षा, कभी अभीप्सा,
कभी कोप का भाजन बनती है।
क्यूँ पुरुषों के अपराध के लिए,
उंगली स्त्री पर उठायी जाती है।"
"जो मेरा शाप मिटायेंगे,
तो पतित-पावन कहलायेंगे।"
"पर सत्य कहिये हे रघुनन्दन,
क्या मैं सच मुच पतिता हूँ?
या कामुकता का आहार बनी,
सचरित्र परिणीता हूँ।"
सुन करुण पुकार अहिल्या की,
करुणासिन्धु करुण हुए।
करुणा के दो जल बिंदु,
कमल नयन में चमक उठे।
सन्मुख हो अहिल्या के,
राम हुए करबद्ध खड़े।
शीष नवा कर माता को,
राघव ने तब वचन कहे।
"नहीं माता, तुम पतित नहीं,
सुशील सदा, सुपुनीता हो।
सुरसरी गंगा सी निर्मल,
नारी जाति की गरिमा हो।"
"धरा को जीवन देने वाली,
नारी से कोई महान नहीं।
उसके शोषण से बढ़ कर,
मानवता का अपमान नहीं।"
"कठिन तपस्या से भी मैं,
सुलभ नहीं मिल पाता हूँ।
पर कन्या मुझको आराधे,
मैं सहज ही रीझ जाता हूँ।
तिरस्कार नारी जाति का,
है बढ़ कर सारे पापों से।
मुझ ईश्वर को भी प्रतीक्षा,
समाज छूटे इस अभिशाप से।
इतना कहकर, दीन- दयाल
उसे निज- चरणों का स्पर्श दिये।
कठोर काल के बंधन से,
भगवान भक्त को मुक्त किये।
©अनंता सिन्हा
12/07/2020
ऑडियो :- भारती आंटी साभार
Kyaa ZABARDAST kavita hai. Atee Uttam. God Bless
ReplyDeleteक्या ज़बरदस्त कमेंट है?!!! धन्यवाद मम्मा। इनका कुछ श्रेय तुम्हेँ भी जाता है। बचपन से जो क्रॉसवर्ड जाकर पढ़ने की आदत लगाई है, ये उसका ही परिणाम है। तुम तो वैसे भी मेरी प्रेरणा हो, तुम्हें ही कहानियां और कविता लिखते देख कर तो मुझे लिखने की इच्छा हुई कि मैं तुम्हारी तरह लिख कर अपनी कहानी और कविता छपने के लिए दूँ। इसलिए सब कुछ की लिये धन्यवाद तो क्या, सुपर डुपर धन्यवाद।
Deleteअति सुंदर अभिव्यक्ति प्रभु की करूणा और अहिल्या की तपस्या और भक्ती की|
ReplyDeleteप्यारी माँ,
Deleteतुम बहुत ही प्यारी और इस संसार की सबसे अच्छी माँ हो। तुम मेरी प्रेरणा, मेरी सब से पहली श्रोता और मेरा प्रचार विभाग और उस से भी बहुत कुछ ज्यादा हो,वास्तव में तुम मेरी सब कुछ हो।
लव यू लव यू लव यू
अति सुंदर अभिव्यक्ति प्रभु की करूणा और अहिल्या की तपस्या और भक्ती की|
ReplyDeleteA totally new perspective. Very expressive & lucid.A Great creation.
ReplyDeleteक्या ज़बरदस्त कमेंट है?!!! धन्यवाद मम्मा। इनका कुछ श्रेय तुम्हेँ भी जाता है। बचपन से जो क्रॉसवर्ड जाकर पढ़ने की आदत लगाई है, ये उसका ही परिणाम है। तुम तो वैसे भी मेरी प्रेरणा हो, तुम्हें ही कहानियां और कविता लिखते देख कर तो मुझे लिखने की इच्छा हुई कि मैं तुम्हारी तरह लिख कर अपनी कहानी और कविता छपने के लिए दूँ। इसलिए सब कुछ की लिये धन्यवाद तो क्या, सुपर डुपर धन्यवाद।
DeletePerfect feeling of both.......you know what to write.....with correct emotions.....love you kid
ReplyDeleteSukhi
अंकल जी,
Deleteमुझे बहुत खुशी हुई कि आपको यह कविता अच्छी लगी। वास्तव में मेरी हर सफलता में आनंद तो यही है कि आप लोगों का स्नेह और आशीष मिलता रहता है।
आप इसी तरह मेरे ब्लॉग पर आते रहिये और अपना स्नेह और आशीष देते रहिये।
मुझे भी लगेगा कि मेरा लिखना सार्थक हो रहा है।
Goosebumps!! आँख नम हो गई, एहसास हुआ कि आज भी हर जगह किसी ना किसी रूप में अहिल्या जीवित है। You have done a great justice to Hindi literature.. खूब स्नेह और आशीर्वाद ❤️ You are going to make me famous in my club... ढेर सारा धन्यवाद 🙏
ReplyDeleteBharti aunty
Kitne Sundar shabdon mein bhawon ko puroya hai...saath hi sahi sawal aur Gyan Prabhu ke mooh se sunaya hai...
ReplyDeleteTumhare vicharon me liye phir se bahut shabbashi👏👏👏👏👏
-Archana
मेरी बहु त ही प्यारी आंटी,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर मन सदा आनंद से भर जाता है।
जिस तरह हनुमान जी वाली कविता मुझे हनुमान जी ने ही लिखवायी उसी तरह मैं मानती हूँ कि यह कविता भी प्रभु राम और माँ अहिल्या ने मिलकर लिखा दी मुझे।
अपने आशीष और प्यार भरे शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार। आती रहिएगा।
व्वाहहहहह..
ReplyDeleteसावन में मन भावन रचना...
आप छात्रा हैं, आश्चर्य..
इतना सुन्दर लेखन..
तिरस्कार नारी जाति का,
है बढ़ कर सारे पापों से।
मुझ ईश्वर को भी प्रतीक्षा,
समाज छूटे इस अभिशाप से।
आभार ....
आदरणीया मैम,
Deleteआप मेरे ब्लॉग पर आईं, आपका हृदय से आभार। आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर लगा जैसे मेरा काव्य-लेखन सुफल हुआ। आपका आशीष बहुत अमूल्य है।
मेरा स्वप्न ज़रूर था कि कभी माँ अहिल्या पर लिखूँ पर आज से पहले साहस भी नहीं हुआ और शब्द भी नहीं आये पर मन में था ज़रूर कि लिखूँगी। उस दिन भगवान राम को और माँ अहिल्या को बहुत मनाया को लोखन में सहायता कीजिये, मैं आपके बारे में कुछ लिखना चाहती हुँ।
उन्हों ने विभय सुन ली और आपके आशीष ने सार्थक भी कर दिया। आप सबों के आशीष और परित्साहन के बिना सम्भव नही था।
हृदय से बहुत बहुत आभार। अपना स्नेह और आशीष बनाये रखियेगा,
धन्यवाद।
सरल शब्दों में समाज के अन्याय के विरोध में प्रश्न उठाती सशक्त लेखनी
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteमेरा अनुरोध स्वीकार कर, यहां आने के लिये अत्यंत आभार। यह आपकी उदारता ही है कि मेरे कहने पर आप आ गईं। आपके इन प्रोत्साहन भरे शब्दों से बहुत मनोबल बढ़ा। बहुत खुशी मिली कि आप को मेरी कहना पसंद आई।अपना स्नेह और आशीष बनाये रखियेगा और आतीं रहिएगा।
बहुत बहुत आभार।
Very matured writing. Poem shows ananta’s grasp on ahalya’s character. Choice of words is good. Keep writing. Gurunath
ReplyDeleteअंकल जी,
Deleteआपकी इतनी प्यारी प्रतिक्रिया के लिये बहुत बहुत आभार। अपना स्नेह और आशीष बनाये रखियेगा।
इस में जितनी मेरी योग्यता नहीं, माँ सरस्वती को कृपा अधिक काम आयी है।
आपके हॄदय से आभार।
I’m finally in! Amazing poem! Blessings!
ReplyDeleteवाहह..
ReplyDeleteसारगर्भित रचना।
सिलसिलेवार तरीक़े से सुंदर शब्दों द्वारा समाज से प्रश्न करतीं रचना।
शुभकामनाएँँ एवम् बधाई
आदरणीया मैम,
Deleteमेरा अनुरोध मान कर मेरे ब्लॉग पर आने के लिये बहुत बहुत आभार।
आपकी इतनी सुंदर और उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया पा जर बहुत अच्छा लगा। आप अपना स्नेह और आशीष देती रहिएगा और आती रहिएगा।
सशक्त सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए अत्यंत आभार। आपकी प्रतिक्रिया ने मेरा उत्साह बढ़ाया है।
अपना आशीष बनाये रखियेगा।
बहुत बहुत आभार
प्रिय अनंता , आपकी ये रचना उसी दिन पढ़ ली थी , खेद है कि प्रतिक्रिया के लिए इतना विलम्ब हुआ | आपकी ये रचना पढ़कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और ख़ुशी भी | क्योंकि रचना में समाहित भावों की परिपक्वता हैरान करती है क्योंकि आप एक छात्रा हैं | ख़ुशी की बात है कि साहित्य आप जैसे लगनशील , संस्कारी युवाओं के हाथों में सुरक्षित है | रचना इतनी सुंदर है कि मैं शब्दों में लिखते हुए संकोच कर रही हूँ | अपने आराध्य से माँ अहिल्या के करुना भरे प्रश्न मन को उद्वेलित करते हैं | प्रातः स्मरणीय पांच देवियों में प्रथम अहिल्या को बिना किसी अपराध के मात्र अपनी अबोधता के कारण , बेवजह प्रताड़ित होना पड़ा | युग बीत गये इस प्रश्न पर चिंतन करते पर कोई ये निर्णय ना कर सका कि माता अहिल्या को किस दोष की सजा दी गयी ?आखिर एक पुरुष[ जो कि पति के रूप में उन्हें सुरक्षा प्रदान करने वाले ईश्वरतुल्य त्रिकालदर्शी ऋषि थे ] द्वारा प्रताड़ित दूसरेयुग पुरुष द्वारा उद्धार की बाट जोहती, मानवी से पाषाणी बनी एक नारी को कितनी पीड़ा भोगनी पड़ी होगी अनन्तकाल तक !!आपकी रचना का हर शब्द हर भाव बेजोड़ है | पर ज्यादा सराहना का अर्थ ये बिलकुल नहीं कि आप सीखना बंद कर दें | आपको बहुत आगे जाना है | माँ शारदे आपके लेखन पर अपनी असीम अनुकम्पा बनाये रखे |इस अद्भुत जीवंत काव्य चित्र के लिए , जो अपनी शब्द - भाव माला से पाठकों को अपने साथ अनायास जोड़ता है आपको हार्दिक शुभकामनाएं देती हूँ | साथ में मेरा हार्दिक स्नेह |
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteआपकी यह प्रतिक्रिया पढ़ कर तो मेरे पास आभार के शब्द ही नहीं हैं।
आपका यह स्नेह और अपनत्व अमूल्य है।
इस कविता में मेरी योग्यता से अधिक भगवान राम जी की कृपा कारगर है।
मेरा मन बहुत था कि मैं माँ अहिल्या पर लिखूँ पर कभी साहस नहीं हुआ। उस दिन जब लिखा तो प्रभु को बहुत मनाया भी की आपके बारे में लिखना चाह रही हूँ, सहायता कीजिये।
मेरी इस सफलता में मेरी नानी माँ का भी बहुत हाथ है।
मेरी सभी अच्छाईयां मीठी नानी की दी हुई शिक्षा का ही परिणाम है। घर में नानी मेरी पहली गुरु है।
अपने इस स्नेहमयी आशीष के लिये तो आभार शब्द भी छोटा है, थी कहूंगी की आप मुझे अपना स्नेह और आशीष देती रहिएगा।
और खेद की तो कोई बात ही नहीं है, देखिये मुझे ही कितनी देर हुई।
उस अर्थ से तो खेद मुझे प्रकट करना चाहिये।
आप बस इसी तरह आती रहिये और अपना प्रोत्साहन और प्यार मुझे देती रहिये।
हृदय से अत्यंत आभार।
प्रिय अनंता , एक टंकण अशुद्धि है उसे जरुर ठीक कर लें
ReplyDelete"दोष लगाया स्वामी ने,
मैं ने पर - पुरुष नहीं पहचना।
"
में पहचन -------- पहचाना
सस्नेह
ठीक कर ली मैम। ध्यान अकरहित करने के लिए धन्यवाद।
Deleteसशक्त लेखनी और अभिव्यक्ति की परिपक्वता से अभिभूत हूँ...आपके द्वारा उठाये गये सारे प्रश्न समाज को उद्वेलित कर सकें यह शुभकामना है| लिखती रहें निरंतर...शुभाशीष प्रिय अनंता जी !
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteसबसे पहले तो नेरा अनुरोध स्वीकार कर मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत आभार।
आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया और महत्वपूर्ण आशीष पा कर बहुत खुशी मिली।
आपका स्नेह और आशीष मुझे मिलता रहे।
मन से आभार।
वाह! बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteवृत्तांत और संवाद शैली का वैचारिक परिपक्वता से परिपूर्ण सराहनीय मिश्रण। अहिल्या और राम जी के बीच प्रश्नों के माध्यम से सारगर्भित एवं सदियों से समाज को आलोड़ित करते विचारों को रचना मर्म को छूते हुए कविता में ताज़गी उत्पन्न करती है। वैदिक-साहित्य के पात्रों / संदर्भों पर सृजन निस्संदेह चुनौतीपूर्ण और जोखिमभरा होता किंतु यह अभिव्यक्ति शानदार संदेश संप्रेषित करती हुई पाठकों को रसानंद में डुबो रही है।
लेखन में आजकल वर्तनी एवं विराम चिह्न संबंधी त्रुटियाँ कविता का सौंदर्य प्रभावित करतीं हैं अतः मेरा सुझाव है इस दिशा में भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।
आपकी रचना की एक पंक्ति-
"सुलभ नहीं मिल पता हूँ।" में मेरा सुझाव है 'पता' को संशोधित करके 'पाता' टंकित कीजिए क्योंकि यह मात्र एक जल्दबाज़ी की टंकण त्रुटि है।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
आपकी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी।
लिखते रहिए।
आदरणीय सर,
Deleteआपका मेरे ब्लॉग पर आना ही बहुत बड़ी बात है। सुस्वागतम और आभार।
इतनी सुंदर और विस्तृत प्रतिक्रिया के लिये हृदयसे धन्यवाद। आपको मेरी रचना इतनी पसन्द आयी, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये बहुत बहुत आभार। त्रुटि सुधार लो हूँ।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदरणीय सर,
Deleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत खुशी हुई कि आपको मेरी रचना अच्छी लगी।
अपना स्नेह बनाये रखियेगा और आते रहिएगा।
वाह, आप तो पुराणों की अच्छी व्याख्या करते हो।
ReplyDeleteसुन्दर
आनंद,
ReplyDeleteआपके मेरे ब्लॉग पर आने से मुझे विशेष आनंद मिला है।
क्योंकि आप मेरी तरह विद्यार्थी हैं। आते रहिये। मैं भी आपके ब्लॉग पर आती रहूँगी।
मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति बहुत खुशी की बात होगी।
मेरे ब्लॉग पर आए आप सभी अतिथियों को सादर नमन।
ReplyDeleteआप सबों का मेरी रचनाओं और मेरे प्रति यह स्नेह देख कर मैं अत्यंत प्रसन्न और अभिभूत हूँ।
मेरी परीक्षाएं चल रही थीं इसीलिए कुछ दिनों तक ब्लॉग पर नहीं आ सकी, अतः आप सबों की प्रतिक्रिया का उत्तर नहीं दे सकी।
इस देरी के लिये क्षमा चाहती हूँ।
आप सभी मुझ पर अपना स्नेह और आशीष बनाये रखियेगा। आते रहिएगा।आप सबों की प्रतिक्रिया ही मेरी ऊर्जा है।आप सभी मुझ से बड़े हैं, आपका मुझे इतना स्नेह देना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। आते रहिएगा।
हृदय से आभार।
बहुत सुंदर रचना ईश्वर की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteअपने इस प्यार भरे आशीष के लिए ह्रदय से आभार व् सादर नमन। अपना स्नेह बनाये रखियेगा और आती रहिएगा।
This is awesome Anantha. May u keep writing beautiful ones. God bless u bachha.
ReplyDeleteप्रिय अनंता | बहुत कम समय में ब्लॉग जगत में तुम्हारी सशक्त उपस्थिति देखकर अच्छा लग रहा है तुम्हारी रचनाएँ तो अच्छी है ही | ऐसी ही रहना | मेरा प्यार |
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteआप सबों के स्नेह व आशीष के लिए जितना ही आभार व्यक्त करूं कम है। आती रहिएगा। हार्दिक आभार व सादर नमन।