माता प्रकृति, विनती है तुमसे,
करना तुम स्वीकार हृदय से,
मेरी यह क्षमायाचना।
क्षमा मांगती हूँ उन प्रहारों के लिए,
जो हम निर्दयता से तुम पर करते हैं।
उस असीम दुख के लिए,
जो हम हर क्षण तुमको देते हैं।
पालन पोषण हुआ हमारा तुम्हारे ममता मयि आँचल में,
फिर भी हम इतने निर्मम क्यूँ हो जाते हैं?
यह जान कर की धन जीवन नहीं है,
हम लोभ में पड़ जाते हैं।
अनेक घर और चार गाड़ियाँ हों,
तो हमारा मान समाज में बढ़ जाएगा।
पर हम ये भूल जाते हैं ,
कि वनों और प्राणवायु बिना हमारा जीवन ही मिट जाएगा।
हम स्वार्थी हैं जो ये नहीं समझ पाते हैं,
की खेल और व्यवसाय मान कर हम जो कुछ भी कर जाते हैं।
वही कार्य हमारे तुमको शोकाकुल कर जाते हैं।
पशु- पक्षी का शिकार,
मनोरंजन के लिए करते हैं।
वृक्ष काट काट कर,
कनक भवन बनाते हैं।
एक छोटी सी चोट लगने पर कितनी पीड़ा हमें होती है,
हम ये क्यूँ भूल जाते हैं?!
तुम्हारे अनगिनत निर्दोष सन्तानों की,
हत्या हम कर जाते हैं।
जब इस से भी हमारा मन नहीं भरता,
हम हिंसा को पूजा बनाते हैं।
शायद इसलिए क्यूंकि जगदम्बा को,
हम केवल मंदिर में ही देख पाते हैं।
क्षमा करो हे जगत- जननी वसुंधरा,
जो हम तुम्हें न भगवती मान पाते हैं।
तभी तो हर विजयदशमी हम,
पशुओं की बलि चढ़ाते है।
दिया तुमने सब कुछ हमें,
स्वच्छ और परिपूर्ण था।
अन्न जल वसन भूषण,
कहो कहाँ कुछ कम था?!
पर आज हमने अपनी नदियों को,
प्रदुषित इतना कर दिया।
की आज गांव का गांव,
एक बूंद पानी के लिए तरस गया।
उपवनों का नाश कर,
हम तुम्हें वर्षा करने में असक्षम बनाते हैं।
फिर अकाल के समय तुम्हें विक्राल कह कर ,
तुम पर ही लांछन लगाते हैं।
पर में तुमसे बरम बार क्षमा मांगती हुँ,
चाहे यह निश्चित न हो,
कि मैं तुम्हारे लये क्या कर सकती हूँ?
पर हाँ, जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाउंगी,
अपने कमाए धन का दसवां हिस्सा,
तुम्हारे संरक्षण में लगाउंगी।
अभी मैं तुम्हें इतना वचन बस दे सकती हूँ,
की माँ मान कर पुजती हूँ तुमको,
अपनी प्रिय सखी मानती हूँ।
चहे मिले तीनों लोकों का भोग- विलास मुझे,
मैं कभी न दूंगी तुम्हें कोई प्रताड़ना,
पर हाँ मैं तुमसे बारम बार करूँगी क्षमायाचना।
©अनंता सिन्हा
5/6/2014
ऑडियो :- भारती आंटी साभार
Very Nice Ananta. Keep it up👏👏👍
ReplyDeleteस्नेह भरे आशीष के लिए आभार
DeleteV
ReplyDeleteNeed of the hour poem!! we all need to take a leaf out of this one and pro actively take care of our Mother Earth.
ReplyDeleteMa Prakriti humey jeevan deti hain aur hum unhi ka krurata se iss kadar duhan karte hain...bahut dukhad stithi hai
माँ , यह कविता विशेष रुप से तुम्हारे लिए है। तुम्हारा प्रकृति प्रेम और पशु प्रेम मेरे लिए भी प्रेरणा है।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteWe all must feel sorry and be thankful to nature who provide us so much free of cost endlessly....
ReplyDeleteअंकल, प्यार भरे आसिष के लिए मन से आभार। आपका स्नेह और प्रोत्साहन अमूल्य है।
DeleteWe all must b thankful to nature....and if ur generation understands this...den world is definitely in safer hands coz u r the future...hope everyone thinks the way u do...
ReplyDeleteइतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा और मेरे ब्लॉग पर आते रहिएगा। माता प्रकृति के प्रति सबको कृतज्ञ रहना होगा और सम्भाल कर रखना होगा न कि एक व्यक्ति विशेष या पीडो विशेष को।
Deleteप्रिय अनंता जी,
ReplyDeleteप्रकृति धरती की आत्मा हे,हम स्वार्थी मनुष्य इसका दोहन ही करते है इसकी सुरक्षा और संरक्षण हेतु भी प्रयास आवश्यक है यह भूल जाते हैं।
बहुत अच्छी है आपकी कविता।
आप जैसी युवा प्रतिभा का ब्लॉगिंग में रूचि निश्चित ही साहित्य के लिए सुखद है।
कृपया ब्लॉग फॉलोअर गैजेट लगाइये ताकि आपको फॉलो किया जा सके और आपकी नयी रचनाओं के अपडेट्स मिलते रहे हमें।
सस्नेह शुभकामनाएं आपकी लेखनी के लिए।
आदरणीया मैम,
Deleteइतने शीघ्र उत्तर के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा।
मेरे एक अनुरोध से आप मेरे ब्लॉग पर आ भी गयीं और मेरा मार्गदर्शन भो किया। आपकी इस उदारता के लिए हृदय से आभार।
आशा है कि आप अक्सर ही आएँगी और मेरा मार्गदर्शन करती रहेंगी।
ब्लॉग पर मेरी एक कविता और है - जब हनुमान जी स्वयँ बोले। इस कविता में भगवान श्री हनुमान जी हमें अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराते हैं। कृपया वह भी पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया दें।
मुझे मेल करिये।
DeleteSwetajsr2014@gmail.com
Sure Ma'am
DeleteSure Ma'am
DeleteAnanta, tumhari soch or abhivyakti bahut he sundar hai. Is kavita mein tumne prthivi ke kasht or amanaviyata ko bahut khubsurat shabdon mein piroya hai....Dharti maa sach mein bahut dukhi or ro rahi hain , jiska parinaam charo taraf deekh raha hai....tum apni in kavitaon dwara kaafi logon ki aankhe khol sakti ho....kavi mein jagat ko sahi raah per le jaane ka gun pramukh hota hai.....maine sab chaya vaad ke kaviyoun or unki rachnaon ko kafi had tak pada or samjha hai....Jai Shankar Prasad ji ki kaamayini bhi pralaya ka bahut sundar vistran or vivachan karti hai.
ReplyDeleteBhagwan tumhe is sahi or kathin path par or agrasit karein mein yah kaamna karti hun.
Loads of love and Good wishes
Deepti Jain Aunty
Deleteदीप्ति आंटी… .......!!!!!! आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अपना स्नेह वआशीष सदैव इसी प्रकार बनाये रखियेगा। आपने जो विश्वास मुझ पर जताया है, आशा है मैं उसकी पात्र बनूँ। पर हाँ, मुझे यह विस्वास ज़रूर है कि आप सबों के आशीष बना रहे तो मैं कठिन से कठिन लक्ष्य की प्राप्ति कर लूंगी। अपने मार्गदर्शन के लिए भी आपका आभार। मैं कामायनी पढ़ने का प्रयास करूँगी। रश्मिरथी तो पढ़ी है मैं ने पर अभी और भी बहुत पढ़ना शेष है।
Deleteश्रेष्ठ कृति ❤️ एक बार फिर पढ़कर तुम पर गर्व हुआ।
ReplyDeleteईश्वरीय वरदान है और इस प्रतिभा को निरंतर आगे विकसित करो.. ऐसा मेरा आशिर्वाद है।
Much love and blessings
Bharti aunty
आपका बहुत बहुत धन्यवाद आंटी । अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा और आती रहिएगा।
Deleteमुझे आपकी बातों से बहुत प्रोत्साहन मिला और आशा करती हूँ आगे भी मिले
Wow well said Beta ji👌🏼 you have expressed your message through poetry so beautifully, well done👍🏼 very inspiring, You indeed are a beautiful soul and an example to all mankind....
ReplyDeleteGod bless you with all your heart's desires.
💞 love you.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा और आते रहिएगा। आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया ने मुझे और भी प्रोत्साहित किया है और मेरा मनोबल बढ़ाया है। मैं इसी प्रकार नई नई रचनाएँ आपके आगे प्रस्तुत करती रहूंगी।
DeleteYou are too good Ananta.
ReplyDeleteBeautiful expressions Ananta,,, well done,,, wishing you more power to bring the change ,,, stay blessed
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद। अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा और आते रहिएगा।
Deleteवाह! बहुत ही सुंदर रचना!!! आगे भी यूँ ही लिखते रहिए। आभार और शुभकामना!!!!
ReplyDeleteआपकी शुभकामनाओं के लिए आभार। मुझे बहुत खुशी हुई कि आपको मवड़ी रचना पसन्द आयी। परन्तु एक जिज्ञासा है, आपको मेरे ब्लॉग के बारे में कैसे जानकारी मिली?
Deleteमवड़ी नहीं मेरी
ReplyDeleteVery nice poetry..good efforts done by you.....well done beta
ReplyDeleteधन्यवाद। अपना सबह व आशीष बनाये रखिये। आते रहिये।
ReplyDelete*स्नेह
Deleteबहुत ही सुन्दर वर्णन है, बिल्कुल सही है हम मनुष्य प्रकृति से सिर्फ लेना जानते है, अगर थोड़ा भी ख्याल रखें तो बदले में प्रकृति से जो हमे मिलेगा शायद हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यह जानकर और भी अच्छा लगा कि आज की युवा अगर प्रकृति के लिए इतना सोंचते हैं तो आने बाला कल निश्चित ही अच्छा होगा। सबों को मेरा प्यार। ऐसे ही अपने अच्छी रचनाओं से हमलोग को अवगत कराते रहना।
ReplyDeleteआलोक कुमार सिन्हा(राजू) बैंगलोर
बड़े मामा जी,
Deleteप्रणाम।
आप का आशीष पहली बार मिला। बहुत खुशी हुई। आप ज़्यादा ज़्यादा आइएगा। मैं हर सप्ताह नई कविताएँ डालती रहूँगी।आभार और प्रणाम।
जी यह है..
ReplyDeleteआपने गलत लिख लिया है, सुधारें..
yashodadigvijay4@gmail.com
सादर..
जी मैम,
Deleteमार्गदर्षन और पप्रोत्साहन के लिए आभार।
*मार्ग-दर्शन
Deleteप्रिय अनंता , बहुत सार्थक रचना है | प्रकृति का दोहन जो इंसान ने किया है , दूसरे जीवों ने नहीं किया | उन्होंने जितनी जरूरत थी उतना लिया पर मानव ने सिर्फ़ लिया और पोषण करना छोड़ दिया | उससे क्षमायाचना तो बनती है | लिखती रहो | मेरी शुभकामनाएं और प्यार |
ReplyDeleteएक सुझाव है | अपने ब्लॉग को नयी थीम में बनाइए | अन्दर जाकर नयी थीम try करिये | मेरा सुझाव है Awesome Inc.थीम या Watermark लगाएं | उससे ब्लॉग के सभी विल्कप सामने दिखेंगे | उसके बाद costomise से edit करके आप ब्लॉग को और सुंदर बना सकती हैं | इस थीम में आपका फ़ॉलो का विकल्प सबको नजर नहीं आता | सभी को नहीं पता |मोबाइल में उपर चार लाइनें दबाकर फ़ॉलो का बटन दिखता है |नई थीम लागू होने पर आपकी रचनाएँ और टिप्पणियाँ पूर्ववत सुरक्षित रहेंगी | मेरा प्यार |
ReplyDeleteआदरणीया मैम ,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया सदैव ही स्नेह और आशीष से परिपूर्ण होती है।
मुझे निरंतर प्रोत्साहित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार।
मुझे बहुत ख़ुशी हुई की आपको मेरी रचना इतनी अच्छी लगी।
आप इसी प्रकार अपना प्यार मुझे देती रहिये। आभार।
साथ ही साथ, आपका सुझाव कार्यान्वित क्र लिया है।
Deleteइतने उत्तम और नहत्वपुर्ण मार्गदर्शन के लिए भी आभार।
महत्वपूर्ण
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 20 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
Deleteआपके प्रोत्साहन और आशीष के लिए जितना आभार दूँ, कम है।
उत्तर देने में देर हुई, इसके लिए क्षमा मांगती हूँ।
परीक्षाओं जे चलते ब्लॉग पर नहीं आ रही थी। बहुत बहुत धन्यवाद।
अच्छा लगा इतनी सारी टिप्पणियाँ देख कर। लिखती रहें।
ReplyDeleteआदरणीय सर,
Deleteआपका मेरे ब्लॉग पर आना ही बहुत बड़ी बात है। बहुत बहुत आभार
आते रहिएगा और अपना आशीष बनाये रखियेगा।
परीक्षा के चलते , उत्तर देने में विलम्ब हुआ, क्षमा करियेगा।
बहुत सुंदर सार्थक चिंतन देती रचना, धरा की मजबूरी है वो बस देती है पर स्वार्थी मानव भूल जाता है, कि एक सीमा तक दोहन के बाद धरा भी ऐसी विकराल करवट बदलती है ,कि मानव की कमी पिढ़िया संकट में आ जाती है मानव क्यों नहीं समझता कि पुरे ब्रह्माण्ड़ में उसके रहने के लिए सिर्फ पृथ्वी ही है।
ReplyDeleteआपकी कविता यथार्थ पर सुंदर चिंतन है ।
बहुत बहुत बधाई।
आदरणीया मैम,
Deleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। मेरा अनुरोध मान कर यहां आने के लिये बहुत बहुत आभार। आपकी यह बात बहुत ही उचित है कि माता पृथ्वी पर हम आश्रित हैं, वे हम पर बिल्कुल भी आश्रित नहीं। ऐसे तो हम करोड़ों खर्च करके यह ढूंढने के प्रयत्न करते हैं कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना है या नहीं पर जो माता पृथ्वी जीवन दे रहीं हैं, उनके संरक्षण के लिए कुछ नहीं करते हैं।
अपना स्नेह और आशीष बनाए रखियेगा और अति रहिएगा।
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने....
ReplyDeleteसही कहा हमें क्षमा याचना करनी चाहिए पृथ्वी की।
बहुत ही सुन्दर कोमल भावों से सजी लाजवाब भावाभिव्यक्ति
वाह !!!!
आदरणीया मैम,
Deleteआपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार।
अपन स्नेह और आशीष बनाए रखियेगा और आती रहिएगा।
धन्यवाद अन्नू
ReplyDeleteअत्यंत प्रासंगिक कविता । आप कम क्यों लिखती हैं ? नियमित लिखिए । शुभकामनायें आपको।
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