हे प्राणप्रिय जीवन संगिनी,
गृह लक्ष्मी मेरे आंगन की,
मेरी हृदय उल्लासिनी,
स्वामिनी मेरे मन की।
जब तुम मुझ से ब्याह कर घर आयी थी,
यह बात न मन में लायी थी,
तेरे पायल की झनक से,
तेरे कंगन की खनक से,
यूँ दूर मैं चला जाऊंगा,
तेरे समर्पण को यूं ठुकराउँगा।
पर मैं नहीं पति बस तेरा हूँ,
मैं भारत माँ का भी बेटा हूँ
इस भूमि पर घुसपैठ किया,
आए बन कर व्यापारी,
अब शासक बन बैठे हैं,
यह अंग्रेज़ी अतिक्रमणकारी।
दीन-हीन जनता भारत की,
कष्ट सह रही भारी,
गौ और विधवा को सता रहे हैं,
यह विदेशी अत्याचारी।
तुम्हें छोड़ मुझे अब जाना होगा,
अपना धर्म निभाना होगा,
कर विजय तिलक मेरे माथे पर,
तुम मुझ को विदा करो अब हंस कर।
तुम पत्नी हो एक वीर पुरुष की,
नहीं कोई सामान्य नारी हो,
भले जन्मी तुम साधारण घर में,
पर मन से तुम क्षत्राणी हो।
पुण्य-भूमि भारत माता की,
कल रणभूमि बनेगी,
शीष कटेंगे आतताइयों के,
धरती लहू पीयेगी।
स्वाधीनता संग्राम की अग्नि से,
ग़ुलामी के बंधन टूटेंगे।
प्राणों की आहुति देकर,
पराधीनता के शाप से छूटेंगे।
जब भी मनुष्य इस पृथ्वी पर जन्म लेकर के आता है,
स्वाभिमान पूर्ण स्वतंत्र जीवन का उपहार ईश्वर से पाता है।
फिर हम क्यूँ छिन जाने दें,
अपने जन्मसिद्ध अधिकारों को,
क्यूँ मौन हो सहते रहें निशिदिन,
इनके अत्याचारों को।
स्वाभिमान के कुचले जाने से,
शस्त्र उठाना अच्छा है,
रोज़ रोज़ तिल-तिल मरने से,
एक बार मर जाना अच्छा है।
अतः प्रिये मुझे अब जाने दो,
अपना करतब कुछ दिखलाने दो।
मैं लौट अवश्य ही आऊंगा,
यह मेरा वचन है तुमसे,
आऊँ भारत माँ को मुक्त करा कर,
या अर्थी पर चढ़ के।
घर से चला वह वीर,
अपनी पत्नी से इतना कह कर,
मर-मिटा अपनी जन्म-भूमि पर,
लौटा कफन में बंध कर।
थी धन्य उस वीर की पत्नी,
न निकली मुख से करुण पुकार,
उसका स्वागत करने आई,
कर सोलह श्रृंगार।
उसको करबद्ध नमन किया,
लिया अपने आलिंगन में,
नयनों में अश्रु रोक कर,
कहा रुंधे गले से।
हो धन्य तुम भारत के गौरव,
है धन्य तुम्हारा स्वाभिमान,
तुम नहीं केवल हो मेरे प्राण,
देश - भक्ति के तुम भूषण महान।
इसी प्रकार कई वीरों ने,
अपने घर से विदा ली,
स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े,
और जान की बाज़ी लगा दी।
इसी प्रकार कई पत्नियों ने,
अपना सिंदूर मिटाया,
इसी प्रकार कई माताओं ने,
अपनी कोख लुटाया|
इसी प्रकार कई बहनों ने,
अपने भाई की बलि चढ़ा दी,
इसी प्रकार कई पुत्रियों ने,
अपने पिता को सदा के लिए विदा दी।
इन्हीं वीरों के बलिदानों से,
हम ने स्वतंत्रता पायी,
आज़ादी की चादर ओढ़े,
पंद्रह अगस्त की तिथि आयी।
पर कहीं नहीं इन वीरों का,
इतिहास में नाम लिखा है,
इनके असीम बलिदानों को,
बस काल चक्र ने देखा है।
ऐसे ही एक गुमनाम वीर की,
में यह कथा सुनाती हूँ,
इन्हें और इनके परिवारों को,
में नित नित शीष झुकाती हूँ।
©अनंता सिन्हा
15/8/2017
ऑडियो :- अनंता सिन्हा (सर्वाधिकार सुरक्षित )
A most emotional and moving poem. 🇮🇳🇮🇳🇮🇳👏👏👏 Well Done
ReplyDeleteआपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी ने मेरा मनोबल बढ़ाया है।
Deleteआपको रचना अच्छी लगी, इस बात की मुझे बहुत खुशी है।
कृपया अपने स्नेह बनाये रखिये और आते रहिये। हृदय से आभार।
Garv, Vishwas, aur karuna se bhari yeh Kavita...ati Sundar🙏❤️
ReplyDeleteमेरी प्यारी मासी,
Deleteआप अपना नाम लिखें ब लिखें, आपको आपकी प्रतिक्रिया से ही पहचान लुंगी।
अत्यंत प्रसन्नता है कि आपको हमारे सैनिकों को मेरी यह श्रद्धांजलि अच्छी लगी। आपका आशीष सदैव मिले, यही कामना है।
A poem full of COURAGE & EMOTIONS.
ReplyDeleteNever heard anything more moving than this.
Bless you.
मेरी प्यारी मम्मा,
Deleteलव यू लव यू लव यू।😉😍😘😁❤️❤️❤️
Ek Sainik ki marmic gaatha!!
ReplyDeleteमेरी प्यारी माँ,
Deleteबड़ी धाँसू प्रतिक्रिया दी।
❤️❤️❤️😍😘
इन्हीं वीरों के बलिदानों से,
ReplyDeleteहम ने स्वतंत्रता पायी,
आज़ादी की चादर ओढ़े,
पंद्रह अगस्त की तिथि आयी।
वाह
सुंदर सृजन ।
आदरणीय सर,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया ने मवरे मनोबल बढ़ाया है। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया जे लिए हृदय से आभार। बहुत खुशी है कि आपको मेरी यह रचना अच्छी लगी।
Ananta.... लेखनी और अभिव्यक्ति, दोनों ही सुन्दर, अति सुन्दर। मेरी आंखें भर आयीं। अपने देश से दूर बैठे कुछ ज्यादा ही मन भारी हो जाता है। I Thank you for bringing me closer ❤️excellent presentation!
ReplyDeleteगुमनाम शहीदों को समर्पित अत्यंत मार्मिक रचना। वृत्तांत शैली की शानदार रचना जो स्वाधीनता संग्राम के अनेक उन गुमनाम शहीदों को समर्पित है जो देश के लिए अपना सर्वस्व लुटाकर किसी प्रकार की ख्याति या यश पाने की लालसा से दूर रहे और उनका नाम अनेक कारणों से हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास से नदारद है, इस विकट निराशा को आपकी रचना यथोचित सम्मान देती है।
ReplyDeleteऑडियो वाचन और उच्चारण की दृष्टि से भावपूर्ण एवं प्रशंसनीय है।यह प्रयास जारी रहे।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
एक संशोधन का सुझाव है-
"अपना कोख लुटाया" पंक्ति में 'कोख' शब्द चूँकि स्त्रीलिंग संज्ञा है अतः वाक्य यों उचित होगा-
"कोख को अपनी लुटाया"
इसी तरह घुसपैठ भी स्त्रीलिंग शब्द है।
Apne desh ke veeron ke prati is abhivaykti ko hum the dil se appreciate karte hain.......jai hind
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 18 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय सर, आपके इस अतुलनीय प्रोत्साहन के लिये अभड़ के सारे शब्द छोटे हैं। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि आपको मेरी यह छोटी सी श्रद्धांजलि इतनी अच्छी लगी।
Deleteत्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए भी बहुतआभार। उसे सही कर लुंगी।
आपकी उदारता के लिये आपको सादर नमन।
सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीय सर ,
Deleteआपका मेरे ब्लॉग पर आ कर मेरा मनोबल बढ़ाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
आपको मेरी यह छोटी सी श्रद्धांजलि अच्छी लगी, यह मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है।
अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा। ह्रदय से आभार व सादर नमन।
बहुत सुंदर भाव। बधाई और आभार।
ReplyDeleteआदरणीय सर,
Deleteमुझे बहुत प्रसन्नता है कि आपको मेरी यह कविता अच्छी लगी। यह तो मैं ने एक छोटा सा प्रयास किया हमारे वीरों को श्रद्धांजलि देने का। अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा। हृदय से आभार।
It's an excellent poem.The feelings of a soldier so beautifully expressed by you. Hats off to our veer jawaans and their families who sacrifice so much for us.. salute them......love Bina
ReplyDeleteआदरणीया मैम ,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए सब से अधिक बहुमूल्य है। मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य की मुझे आप जैसी गुरु मिली। तीसरी कक्षा से लेकर आज तक मुझे संभालने , मेरा पग - पग पर प्रोत्साहन और मार्गदर्शन करने के लिए और हर समय अपना आशीष देने के लिए क्या आभार दे सकती हूँ। बहुत कम विद्यार्थी होते हैं , जिन्हे आप जैसी टीचर मिले। सफलताओं में आप ही का तो हाथ है। आपको ह्रदय से नमन है।
सैनिकों के जीवन का मर्मस्पर्शी सृजन मन को छूता हुआ।बहुत ही सुंदर वाचन किया है आपने अनंता जी।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया मैम ,
Deleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए ह्रदय से आभार। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने मेरा मनोबल बढ़ाया है। मुझे बहुत प्रसन्नता की आपको मेरी यह कविता और मेरा बोलना, दोनों इतना अच्छा लगा। अपना आशीष बनाये रखियेगा।
एक विनती और , मैं आपसे आयु में बहुत छोटी हूँ ,आप मुझे केवल अनंता कह कर ही पुकारिये। सादर नमन।
पर कहीं नहीं इन वीरों का,
ReplyDeleteइतिहास में नाम लिखा है,
इनके असीम बलिदानों को,
बस काल चक्र ने देखा है।
स्वतंत्रता दिवस पर बहुत ही शानदार सृजन
सचमुच खेद का विषय है ये कि बहुत से स्वतन्त्रता सैनानियों के नाम हमारे इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हैं आपकी रचना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।
आदरणीया मैम ,
Deleteमेरे ब्लॉग पर आ कर इतनी सुंदर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका ह्रदय से अत्यंत आभार।
मुझे बहुत प्रसन्नता है की आपको मेरी यह छोटी सी श्रद्धांजलि इतनी अच्छी लगी।
आप अपना स्नेह व आशीष बनाये रखिये। पुनः आभार व सादर नमन।
प्रिय अनंता , आपकी काव्यात्मक प्रतिभा को देखकर हैरान भी हूँ और खुश भी | हैरान इसलिए कि एक छोटी सी लड़की कैसे इतने सुंदर भावों का गुंथन अपनी रचना में कर सकती है ? इसके साथ खुशी की ये बात है कि साहित्य संसार में उज्ज्वलता की आशा लिए एक भावी रचनाकार आकार ले रही है | अनाम शहीद जिनकी गाथाएं अनकही रह गयी m उनकी विरुदावली कौन गायेगा ? ये कवि ही है जो उनका यश गाकर उन्हें सबकी स्मृतियों में जीवित रखता है और आने वाली पीढियां उनसे प्रेरण लेकर राष्टधर्म की ओर उन्मुख रहती हैं | सर्वोच्च बलिदान को तत्पर एक सैनिक के मन के भावों को आपने सरसता और मधुरता से बड़ी सरल भाषा में शब्दांकित किया है , जिसके लिए
ReplyDeleteनिसंदेह आप मुक्त कंठ से सराहना की अधिकारी हैं | पर पुनः दोहराऊँगी ये सराहना आप आपका गंतव्य नहीं -एक पडाव मात्र है | इसमें उलझकर आप इसे अपने ऊपर हावी ना होने देना | ये प्रोत्साहन के लिए है - जिसके सहारे आपको आगे जाना है | अशुद्धियों के बारे में रवीन्द्र भाई ने जो सुझाव दिए हैं उन्हें जरुर गौर करना | इस ओजपूर्ण रचना के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएं और प्यार | वीर शहीदों को कोटि नमन जिनकी बदौलत हमारी सीमायें सुरक्षित हैं और हम निश्चिन्त |
आदरणीया मैम,
Deleteआपके असीम स्नेह ने मुझे पुनः निशब्द कर दिया है। प्यार और आशीर्वाद के लिए कोई क्या ही आभार दे सकता है। आपके हर शब्द में मेरे लिये स्नेह, शुभचिंतन और आशीष भरा हुआ है। आपकी हर एक बात मेरे लिये शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक है। आपकी दी हुई सीख जीवन भर याद रखूँगी। हृदय से नमन।
ऑडियो मोबाइल में सुनकर जल्द ही बताती हूँ |
ReplyDeleteप्रिय अनन्ता, अभी सुन पाई। बहुत सुंदर, शुद्ध
ReplyDeleteऔर बड़ी मधुरता से वाचन किया है रचना का । जैसे कविता के भाव, वैसी ही ओजपूर्ण वाणी👌👌👌यूँ ही आगे बढती रहो। मेरी शुभकामनायें और प्यार।
एक त्रुटि जो कल रात देख नहीं पाई
तुम नहीं केवल हो मेरे प्राण,
देह भक्ति के तुम भूषण महान।
में देह भक्ति ---_--- देश भक्ति कर लेना।
आदरणीया मैम,
Deleteमुझे अत्यंत खुशी है कि आपको मेरा ऑडियो इतना अच्छा लगा। आपका स्नेह मेरे लिये अमूल्य है। सभी त्रुटियां सुधार ली, जब से ब्लॉगिंग करना शुरू किया तब टंकण अशुद्धियों से नाता जुड़ गया, पीछा छुड़ाने के लिए बहुत श्रम लगेगा।🌺😊🙏
Ananta , you are the definition of underrated. Sheer talent and passion. Please keep composing such gems !!!
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