Thursday, July 1, 2021

वर्षा ऋतु







काले घनघोर बादलों ने आकाश को कंबल की तरह ढक रखा था। बरखा रानी अपने जल से पूरी पृथ्वी को स्नान कराने के लिये आतुर थी। नर्मदा नदी तरंगें लेती हुई और कल-कल नाद करती अपने तीव्र बहाव से बह रही थी।

बच्चों की बनी कागज़ की नाव नर्मदा नदी में स्थिर गति से चलती हुई नावों के मुकाबले बड़ी तेज़ी से बह रही थी, मानो यह प्रतियोगिता जीतने को ठान रखी हो। बच्चे मोर के समान आनंदित हो कर नाच रहे थे।

हवा तेज़ी से बह रही थी जिसके कारण उस छोटे से हनुमान मंदिर के दरवाज़े बार – बार खुल कर बंद हो रहे थे। हवा एक सच्चे आस्तिक की तरह मंदिर की घंटी बजा कर पुनः लौट जाती।

वहीं बारह साल की रेणुका अपनी हवेली के बाहर बारिश में भीगने का आनंद ले रही थी। वह मिट्टी और बारिश के पानी से बने तालाब में उछल – उछल कर खेल रही थी। खेलते - खेलते वह ये भी सोच रही थी “यदि मेरी कोई सहेली होती या मेरी कोई बहन होती तो खेलने में और मज़ा आता”।

प्रकृति अपने सब से सुंदर रूप में थी पर उस दीया-सलाई बेचने वाली लड़की के लिये ऐसा बिल्कुल नहीं था………..उसके लिये यह वर्षा विकराल थी। आज सुबह  से उसका एक डिब्बा दीया-सलाई भी नहीं बिका था । वह सिर से पाँव तक भीगी हुई थी। उसके कपड़े फटे हुए थे और उसे बहुत ठंड लग रही थी। बारिश से बचने के लिए वह एक पीपल के पेड़ के नीचे जा बैठी । उसे भूख लगी तो उसने अपना हाथ पसार लिया पर वहीं बैठी रही, किसी से कुछ माँगा नहीं।

व्याकुल  वह पहले से ही थी, ऐसे में मंदिर की घन्टी की आवाज़ उसे और भी विचलित और भयभीत कर रही थी।

तभी रेणुका की नज़र उस लड़की पर पड़ी। रेणुका के पास कुछ टॉफ़ियाँ थीं, वह उस लड़की के पास गई और एक टॉफी दी।
रेणुका ने लड़की के हाथ पर टॉफी रखी पर लड़की ने खाया  नहीं, वह जस की तस अपने हाथ पसारे  बैठी रही। उसके हाथ ठंड के कारण शिथिल हो गए थे और वह उन्हें मोड़ नहीं पा रही थी। थोड़ी देर बाद वह टॉफी उसके हाथ से फिसल कर गिर गयी।

रेणुका के मन में उसे देख कर दया, चिंता और प्रेम, तीनों भाव एक साथ ही आ गये। उसने उसे प्यार से पकड़ कर उठाया और अपने घर ले आई ।
घर का दरवाजा खटखटाने पर उसकी माँ ने दरवाज़ा खोला “अरे बेटा! ये तू अपने साथ किसे ले आयी?” उन्हों ने पूछा।
“वो..... माँ, इसे हमारी मदद की ज़रूरत है” रेणुका ने कहा। माँ देखते ही समझ गईं कि उस बच्ची को सहायता की बहुत जरूरत थी। उन्हों ने दोनों को अंदर लिया। “रेणुका, बेटा तू जा कर कपड़े बदल ले और इसके लिये भी अपने एक जोड़ी कपड़े ले आ"  माँ ने कहा और फिर उसका का माथा चूम कर उसे शाबाशी दी।

रेणुका ने कपड़े बदल लिए पर वह लड़की ऐसा न कर पाई। उसके हाथ जो शिथिल थे।

माँ गर्म तेल लेकर आ गईं। रेणुका ने पहले उस लड़की के हाथों में तेल लगाया। तेल लगाते-लगाते उसने लड़की का नाम पूछा “क्या नाम है तुम्हारा?”” पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। रेणुका ने फिर पूछा, इस बार उसने अपने स्वर को और मधुर बना कर  पूछा “क्या नाम है तुम्हारा?” “लाली” उस लड़की ने धीरे से अपना नाम बताया।
गर्म तेल की मालिश से लाली के हाथ सक्रिय हो गए। उसने अपना हाथ बढ़ाया और अपने पैरों में तेल लगाने लगी। रेणुका ने भी अपने हाथ -  पाँव में तेल लगाया। “जाओ लाली कपड़े बदल लो” रेणुका ने उसे अपने एक जोड़ी कपड़े और तौलिया देते हुए कहा।

लाली कपड़े बदल कर आ गई। रेणुका को अहसास हुआ कि  लाली उसकी तरह ही एक लड़की है और सुंदर कपड़ों में उतनी ही सुंदर लगती है जितनी कि वह।

रेणुका के पिता ज़मींदार थे,  वे धनवान और सहृदय थे। उन्होंने लाली को अपने पास बुला कर पूछा “तुम्हारे माता-पिता हैं बेटा और हैं तो कहाँ हैं?”

“माँ घर पर है, बाबू जी बाहर गए थे काम से पर कब से नहीं आये पर माँ कहती है एक दिन ज़रूर आएँगे"।
रेणुका ने अपना फ्रॉक कस कर पकड़ लिया, उसे इस वाक्य का अर्थ समझ आ गया और उसका कोमल मन विचलित हो गया।
“लाली, क्या तुम पढ़ना चाहोगी? मैं तुम्हारे रहन-सहन और पढ़ाई लिखाई का पूरा दायित्व लूँगा” रेणुका के पिता जी ने कहा।
“यही तो मेरी माँ ने नहीं सिखाया, पैसे तो मैं उस से लूँगी, जो मेरे दीया-सलाई खरीदेगा” लाली ने इनकार कर दिया।

“ठीक है, यदि ऐसी बात है तो कल तुम अपनी माँ को लेकर आ जाना,तुम दोनों इस घर के छोटे मोटे काम कर देना और फुर्सत के समय रेणुका के साथ खेल लिया करना।

लाली मुस्करा उठी। उसके होठ ही नहीं, उसकी आंखें भी मुस्कराईं।

अगले दिन वह अपनी माँ को लेकर रेणुका के घर पहुँच गयी। रेणुका के माता पिता ने उसको रसोई घर में हाथ बटाने के लिए रख दिया, हवेली के बाहर एक कोठरी में दोनों की रहने की व्यवस्था कर दी गयी। रेणुका खुशी से नाच उठी, उसे एक सहेली की तलाश थी वह उसे मिल गयी थी।

लाली अपने घर के लिये आर्थिक दायित्व से मुक्त हो गयी। वह रेणुका के साथ स्कूल पढ़ने जाती और आ कर दोनों सहेलियाँ खूब खेलतीं। 

कुछ दिनों बाद दोनों लड़कियाँ बारिश में भीगने का आनंद ले रही थीं। दोनों ने खिलखिला कर एक दूसरे को गले लगा लिया, लाली को अब वर्षा ऋतु से भय नहीं लगता था।

© अनंता सिन्हा 

०१.०७.२०२१ 


24 comments:

  1. Beautiful story..
    Hope everyone understands the plight of the underprivileged, like renuka and her parents...

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    1. आदरणीया मैम, आपकी इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार व आपको प्रणाम । कृपया आती रहें व अपना स्नेह और आशीष बनाए रखें।

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  2. बहुत प्यारी कहानी ।
    ऐसी सोच ही लोगों के मन के भावों को सकारात्मकता से भर सकती है ।

    और हाँ इंटर्नशिप के लिए बधाई ।

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    1. आदरणीया मैम, आपका स्नेह मेरे लिए प्रेरणा-स्रोत है । आपको कहानी अच्छी लगी तो मेरा लिखना सार्थक हुआ । मेरी सफलता आप बड़ों के आशीष का ही परिणाम है । हार्दिक आभार इस उत्साह- वर्धक प्रतिक्रिया के लिए व आपको प्रणाम ।

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  3. बहुत सुंदर कहानी प्रिय अनंता! एक सहृदयी और दूसरी स्वाभिमानी बालिका के निश्चल प्रेम और मानवीय संवेदनाओं से भरी इस कहानी में एक सार्थक सन्देश है कि जो सर्व समर्थ हैं उनके मन और घर के द्वार यदि साधन विहीन और विपन्नता से भरे लोगों के लिए खुल जाएं तो समाज बहुत से विकारों से मुक्त हो सकता है। अपने ही जैसी प्रेमिल आत्मा वाली दो बालिकाओं की इस रोचक और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए तुम्हें ढेरों प्यार और शुभकामनाएं। यूं ही आगे बढ़ो निर्बाध।

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    1. आदरणीया मैम, आपका स्नेह तो जैसे मेरे लिए भगवान जी का उपहार ही है। आपका आशीष मेरी हर रचना को पूर्णता देता है । अनेकों बार प्रणाम आपको ।

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  4. बहुत अच्छी कहानी। ऐसी अच्छी कहानियां सच्ची भी हों तो समाज को बदलने और सुधरने में अधिक समय न लगे।

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    1. आदरणीय सर, आपका प्रोत्साहन मेरे लिए अनमोल है । आपकी प्रतिक्रिया सदा ही प्रेरक होती है। आपके आशीष के लिए हार्दिक आभार, आते रहिएगा ।

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  5. सहृदयता का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती और शिक्षा के लिए प्रेरित करती सुंदर सामाजिक कहानी।बहुत शुभकामनाएँ प्रिय अनंता।

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    1. आदरणीया मैम, आपके स्नेहिल आशीष के लिए हृदय से अत्यंत आभार । कृपया आती रहें व अपना स्नेह बनाए रखें ।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर और सराहनीय भी ।

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    1. आदरणीय सर, आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार । कृपया आते रहें व अपना आशीष बनाए रखें ।

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  7. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
    'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया मैम, आपके इस प्रोत्साहन के लिए अत्यंत आभार । अत्यंत शुभ समाचार । आप सभी बड़ों का स्नेह और आशीष मेरी अनमोल पूंजी है । हृदय से आभार व आपको प्रणाम ।

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  8. बहुत सुन्दर कहानी ।

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    1. आदरणीया मैम, मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। कृपया अपने स्नेह बनाये रखें और आती रहें।

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  9. वाह उत्तम सोच अगर हर समृद्ध परिवार ऐसी पहल करें तो देश से कितनी बड़ी निर्धनता और निरक्षरता की समस्या चुटकी में सलट जाते।
    बहुत सार्थक प्रेरक कथा।
    बधाई।

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    1. आदरणीया मैम, आपकी इस सुंदर व उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार। आपका आशीष अनमोल है, सदा आतीं रहें।

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  10. प्रिय अनंता,
    कहानी का सबसे सबल पक्ष---
    सुंदर प्राकृतिक दृश्यों का जीवंत चित्रण किया है तुमने तुम्हारी कल्पनाशीलता अत्यंत कलात्मक है।
    सहृदयता और सहयोग के प्रेरित करती और स्नेह का सुंदर संदेश देती कहानी के पात्रों की कोमल भावनाओं को सहजता से उकेरा है तुमने।
    लिखती रहो सीखती रहो।
    स्नेहाशीष
    खुश रहो हमेशा।

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  11. मासूम मन की मासूम उपज .. शायद ...

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  12. बहुत सुंदर कहानी, सुबह की ओस जैसी पावन!

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  13. वाह। सुंदर कहानी। काश जीवन भी इतना सरल हो जाये तो कई लालियों का जीवन संवर जाये । शुभकामनायें आपको अनंता जी ।

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  14. मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण बहुत ही सुंदर रचना, अनन्ता। काश, रेणुका और उसके परिवासर वालों से प्रेरणा लेकर कुछ लोग भी जरूरतमन्दों की सहायता करें तो कोई दुखी नही रहेगा।

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  15. बहुत सुंदर और संवेदनशील रचना। आपको बधाई। जिन लोगों को मदद की दरकार है उन्हें थोड़ा सा सहारा मिल जाए तो जीवन को मायने मिल जाए। बहुत बहुत बधाई।

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