आज कविता नहीं, एक कहानी डाल रही हूँ। कहानियाँ लिखती तो हूँ पर कभी डाला नहीं, आज पहला प्रयास है । आप सभी पाठक मुझ से बड़े हैं, आपने सदा मुझे प्रोत्साहन और आशीष दिया है। आज भी अपना आशीष और मार्गदर्शन दीजिएगा, मुझे बहुत प्रेरणा और शिक्षा मिलेगी ।
स्नेहा एक बहुत ही स्नेहिल और शांत स्वभाव की लड़की थी । वह सब के साथ मधुर व्यवहार करती और सदा दूसरों की सहायता करती। उसे प्रकृति से बड़ा प्रेम था और अपने स्कूल के बगीचे में हरियाली के बीच, फूलों और पक्षियों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था।
जब कभी खेल- कूद का
समय होता या भोजन का अवकाश मिलता, स्नेहा और उसके मित्र बगीचे में जाया करते और वहाँ अपना समय बिताते। स्कूल का बगीचा बड़ा ही सुंदर और विशाल था। गुलाब, चमेली, चम्पा, जूही आदि कितने रंग-बिरंगे फूल अपनी छटा और खुशबू बिखेरते
थे, बड़े- बड़े फलदार वृक्ष अपनी छाया फैलाए रहते और उनके फलों की मीठी सुगंध हवा
में घुल कर हर ओर फैल जाती थी। इन में से कई वृक्ष बच्चों ने खुद लगाए थे ।
ऐसे में स्नेहा और उसके मित्रों की रुचि और आनंद के
लिए और कोई बेहतर स्थान नहीं होता। भोजन का अवकाश मिलते ही वे सभी बगीचे में पहुँच
जाते और किसी भी वृक्ष की छाया में बैठ कर भोजन करते। उसके बाद शुरू होता खेल-कूद
और विश्राम का कार्यक्रम।
स्नेहा और श्रेया घूम-घूम कर विविध फूलों को देखतीं
और सूँघतीं और पक्षियों का कलरव सुनतीं। तारा बैठ कर कोई पुस्तक पढ़ती, आकाश पेड़ पर
चढ़ कर आम और अमरूद तोड़ता और केशव आस-पास के पशु-पक्षियों का चित्र बनाता। इन्हीं
गतिविधियों के बीच वे बातचीत करते रहते या आपस में भाग-दौड़ कर खेलते ।
एक दिन स्नेहा स्कूल से घर
लौट रही थी कि उसे बगीचे से कुछ कोलाहल सुनाई दिया। वह दौड़ कर बगीचे में गई तो
देखा की एक कौआ एक छोटी सी चिड़िया पर अपनी चोंच से हमला कर रहा है और बाकी चिड़ियाँ उसके आस-पास घबराहट में चूँ -चूँ कर रहीं थीं ।
स्नेहा दौड़ कर उस तरफ जाने
लगी कि सहसा रुक गई। उसकी माँ ने उसे कौओं से सावधान रहने कहा था वो भी तब जब कोई
कौआ गुस्से में हो।
वह दुविधा में इधर-उधर देखने
लगी कि किससे सहायता माँगे, कि उसे अपने शंकर काका की याद आई। बगीचे का माली शंकर
बच्चों को अच्छी तरह से जनता था और कई बार उनकी मदद भी करता था।
स्नेहा भाग कर बगीचे के
दूसरी ओर गई जहाँ शंकर एक क्यारी बनाने में लगा था “शंकर काका.. शंकर काका, जल्दी
चलिए.. अपने साथ एक बड़ी सी छड़ी भी ले लीजिए, एक कौआ एक छोटी चिड़िया को चोंच मार रहा है , उसे चोट लग
जाएगी, वो उसे खा जाएगा ” कहते-कहते स्नेहा रूआँसी हो गई। शंकर काका उसके पीछे छड़ी लेकर दौड़े।
वहाँ पहुँचने पर काका ने कौए को हाँक मार कर और छड़ी घुमा कर वहाँ
से भगा दिया। दोनों उस चिड़िया के पास गए तब पता चला की एक छोटी सी आहत गौरैया
स्तब्ध पड़ी हुई थी। उसे चोट आई थी पर वह जीवित थी।
स्नेहा ने उसे बड़े प्यार से
अपनी हथेली में उठाया और प्यार करने लगी। कुछ देर तक तो वह गौरैया वैसे ही पड़ी रही फिर धीरे-
धीरे स्नेहा की हथेलियों की गर्मी से कुछ स्वस्थ हुई तो अपने पंख फड़फड़ाने लगी। “अरे वाह
चुनचुन, तू तो सच में जीवित है!” स्नेहा खुशी से खिल-खिला उठी। “काका, मैं ना इसे
अपने साथ ले जातीं हूँ, माँ इसको दवाई लगा देगी तो यह ठीक हो जाएगी” फिर एक प्यारी
सी मुस्कान मुस्कराकर शंकर काका को शुक्रिया कहा “आप बहुत अच्छे हैं काका, आप सब
से अच्छे माली काका हैं ”।
रास्ते भर स्नेहा
चुनचुन से बातें करती रही और उसे आश्वासन
देती रही, “चुनचुन, तू चिंता मत कर, मुझ से बिल्कुल नहीं डरना, मेरी माँ से भी मत
डरना । मैं तुम्हारी सब से अच्छी दोस्त बनूँगी, तुम्हें बहुत प्यार करूँगी, माँ तुमको
दवाई लगा कर जल्दी ठीक कर देगी फिर हम लोग खेलेंगे”।
जब घर आई तो उसने चुनचुन को
अपनी माँ को दिखाया और सारी आपबीती सुना दी। “मेरी समझदार और प्यारी बच्ची” माँ ने
स्नेहा के गालों पर प्यार से हाथ फेर कर उसे शाबाशी दी।
उसके बाद माँ ने चुनचुन की चोट को धोया और रुई से उसका घाव साफ किया। उसके बाद उसपर हल्दी का
एक लेप लगा दिया। “माँ इसे कोई दवा नहीं लगाओगी?” स्नेहा ने आश्चर्य से पूछा।
“बेटा, चिड़ियों को इंसानों
वाली दवा नहीं लगा सकते। हल्दी भी अच्छा असर ही करेगी। पता है, हल्दी कई बीमारियों
की औषधि है और सबसे बड़ा कीटाणुनाशक है”।
दोनों ने मिल कर चुनचुन को
थोड़ा सा दूध-भात मथ कर उसे खिलाने की
कोशिश की। चुनचुन अपनी छोटी सी चोंच खोलती तो स्नेहा खिलखिलाकर हँसने लगती और बड़े
प्यार से उसे थोड़ा- थोड़ा दूध- भात खिलाती
जाती और उसके सर पर हाथ फेरती जाती ।
“माँ, हम लोग इसका क्या
करेंगे ? चुनचुन अपने को अपने पास रख सकते
हैं क्या, बिना पिंजड़े के ?” स्नेहा ने पूछा ।
“अभी के लिए तो रख सकते हैं
पर सदा के लिए नहीं। पक्षियों को खुला आकाश अच्छा लगता है, वही उनके लिए हितकर है”
माँ ने समझाया ।
“हाँ, हमारी टीचर भी यही
कहतीं हैं पर इसको तो चोट आई है न ?” स्नेहा ने कहा। “शाम को तुम्हारे पापा घर आ
जाएं तब हम उन्हें चुनचुन से मिलवाएंगे,
इसे या तो कुछ दिन अपने पास रख कर छोड़ देना पड़ेगा या फिर किसी पशु-सेवा
संस्था में देना पड़ेगा जो इसका इलाज कर के इसे पुनः स्वास्थ कर देगी” माँ ने हँसते
हुए कहा।
माँ ने स्नेहा की चुनचुन से
मित्रता करने की इस बाल-सुलभ इच्छा को समझ लिया था ।
चुनचुन नए वातावरण में थोड़ी
सहमी हुई थी इसीलिए उसे और कहीं उठा कर ले जाना या बार- बार उठा कर प्यार करना
संभव नहीं था । उसे वहीं ड्राइंगरूम के
कोने में छोड़ दिया गया और स्नेहा बड़े धैर्य से उसके सामान्य होने की प्रतीक्षा में
उससे कुछ दूरी पर बैठी रही और उससे बातें करती रही “चुनचुन तू जल्दी से डरना छोड़
दे तब मैं तुझे पूरा घर दिखाऊँगी, अपना कमरा भी दिखाऊँगी, अपने चित्र दिखाऊँगी और स्कूल
की किताबें भी दिखाऊँगी”।
चुनचुन ने कितना समझा यह तो वही जाने पर स्नेहा की यह चबड़- चबड़ चलती रही और कुछ देर में चुनचुन चहक- चहक कर अपनी प्रतिक्रिया
भी देने लगी। वास्तव में चुनचुन स्नेहा की अवाज़
से परिचित होने लगी थी।
शाम को जब स्नेहा के पिताजी
घर आए तो उन्हें पूरे समारोह के साथ चुनचुन से मिलवाया गया। उनके घर में घूँसते ही
स्नेहा ने उन्हे सारी बातें बताना शुरू कर दिया और खींचते हुए चुनचुन के पास ले गई
।
पिता जी ने चुनचुन को ध्यान
से देखा फिर कहा “चोट बहुत बड़ी नहीं है पर थोड़ी गहरी है । लगता है तुम लोगों के
वहाँ पहुँचने के पहले इसने कौए से दो -तीन
बार मार खा ली है” उन्हों ने कहा । “तो अब आप क्या करेंगे पापा” स्नेहा ने पूछा ।
“मेरी बच्ची! मैं एक अच्छे
पशु-सेवा संस्था का पता करूँगा, तब तक तुम इसे अपने पास रख सकती हो” पिता जी ने
स्नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
“पापा आप बहुत अच्छे हैं,
सबसे अच्छे” स्नेहा उनसे खुशी से लिपट गई।
“अच्छा माँ, मैं चुनचुन को
उसका नया घर दिखा दूँ और मैं अपने दोस्तों को भी बुला लूँ इसे मिलने के लिए। अकेले
इसका मन नहीं लगेगा न” स्नेहा ने उत्साह में भर कर पूछा।
“हाँ बेटा, बुला लो” माँ ने
कहा।
इसके बाद स्नेहा ने चुनचुन
को अपनी हथेली पर बैठा कर पूरे घर में घुमाया और साथ-साथ चुनचुन को निर्देश देती
रही “ चुनचुन, यह देखो, यह पूजा घर, यहाँ मत आना और आना भी तो गंदगी मत फैलाना और
कुछ गिराना मत.. और रसोई में भी नहीं जाना, वहाँ हमारा खाना बनता
है और स्टोव पर आग जलती है, बाकी
यह पूरा घर तुम्हारा है पर हाँ चलते हुए पंखे से मत टकराना, तुम्हें और चोट लग
जाएगी” और अंत में अपने कमरे में लाकर मेज़ पर रखी, अपनी गुड़िया के पास बैठा दिया । चुनचुन
पूरे समय जोर-जोर से चहक कर स्नेहा की हथेलियों पर फुदकती रही ।
स्नेहा के मित्र जब घर आए तब बाल-मंडली का काम शुरू हुआ । पहले तो एक-एक
करके सबने उसे अपना नाम बताया, उसे प्यार किया फिर उसे थोड़ा-थोड़ा दूध-भात
खिलाया। इसके बाद सब चुनचुन के लिए रहने
की जगह बनाने में लग गए । स्नेहा के पास एक छोटी सी टोकरी थी, श्रेया ने बड़े ध्यान
से उसपर रुई बिछाई, आकाश और केशव आस पास के पेड़ -पौधों से पत्ते और टहनी तोड़ लाए
और उसे भी टोकरी में डाल दिया। तारा अपने घर से एक रिबन लाई थी जिसे टोकरी में
घुसा कर, उसके सहारे टोकरी को कमरे में
लगी एक कील से टांग दिया गया। “ अब उसे अपने घोंसले की याद नहीं आएगी और वो नहीं
रोएगी” सब बच्चों ने एक साथ बड़े संतोष से
कहा और इस तरह उन आठ साल के बच्चों ने
चुनचुन को खुश रखने का प्रबंध कर दिया।
चुनचुन दो दिनों तक स्नेहा
के साथ रही। ये दो दिन इस घर में इतनी हलचल रहती मानों कोई चिड़िया नहीं, घर में एक
नवजात शिशु आ गया हो ।सुबह-सुबह स्नेहा को अलार्म क्लॉक की जगह चुनचुन की चहक ने
जगाया। स्नेहा के सारे मित्र स्नान करके
उसके घर पहुँच जाते फिर बारी-बारी से चुनचुन को प्यार करते, खिलाते , पानी पिलाते
और उसके साथ खूब खेलते।
चुनचुन को अब इतने सारे
मनुष्यों के बीच रहने की आदत हो गई, वह अपने नए
घोंसले में बैठ कर ज़ोर – ज़ोर से
चहकती और स्नेहा को बुलाती । उसे और उसके मित्रों
को कमरे में आते देख कर अपने पंख फरफराकर उनका स्वागत करती और अपने घोसले
से बाहर पूरे घर भर में फुदक -फुदक कर घूमती
और बड़ी शरारतें करती । कभी जाकर
माँ की गोद में बैठ जाती तो कभी पिताजी के कंधे पर और कभी जब स्नेहा पढ़ाई करती, तो
उसके मेज पर उसकी किताबों पर बैठ जाती और चहक-चहक कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचती। पूरे घर में आनंद छाया रहा पर उसके बाद उसे जाना
पड़ा।
स्नेहा के पिताजी ने एक
अच्छे संस्था का पता कर लिया था और उसे उसके नए घोंसले समेत वहीं छोड़ आए । चुनचुन
के जाने के बाद स्नेहा बहुत उदास हो गई। उसका या उसके दोस्तों का किसी भी खेल-कूद
में मन नहीं लगता, यहाँ तक की स्कूल के
बगीचे में भी नहीं। वैसे तो बगीचे में बहुत से पक्षी थे पर उनमें से कोई भी चुनचुन
का स्थान नहीं ले सकता था ।
कुछ दिन बीते और फिर हफ्ते, और परीक्षाएं सर पर आ गईं । सभी बच्चे पढ़ाई में व्यस्त हो गए और फिर धीरे-धीरे सब
कुछ भूल कर वापस हँसने - खेलने लगे।
एक दिन जब पांचों बच्चे
बगीचे में खेल रहे थे , उन्हें किसी चिड़िया के जोर-जोर से चहचहाने की अवाज़ आई ।
उन्हों ने उस वृक्ष की ओर देखा तो एक गौरैया उसकी टहनी पर बैठ कर चहचहा रही
थी। “चुनचुन !!!” बच्चों ने उसे तुरंत
पहचान लिया ।
चुनचुन तेज़ी से उड़ कर उनके निकट आई और उनके आस-पास मंडराने लगी
फिर बारी -बारी से स्नेहा के कंधे पर बैठी फिर श्रेया के और फिर तारा की उंगलियों
पर और आकाश और केशव के सर पर । बच्चे तो
फूले नहीं समा रहे थे ।
“अरे चुनचुन, हमलोग तुझे याद
हैं !” स्नेहा ने पूछा, “हाँ, मुझे लगा तू हमें भूल जाएगी” केशव ने कहा। इसके उत्तर में चुनचुन फिर से चहक-चहक कर उन सब
के पास मंडराने लगी, मानों उन सब का आभार मान रही हो और उसके बाद वहाँ से उड़ कर आम
के पेड़ की एक ऊंची टहनी पर बैठ गई तब बच्चों ने देखा की चुनचुन ने अपना एक घोंसला
बनाया था और उसने दो प्यारे-प्यारे चूज़े
भी दिए थे।
अब बच्चों की दिनचर्या में
चुनचुन सदा के लिए शामिल हो गई। वे रोज उसके लिए दाना लेकर आते और उसे खिलाते
और चुनचुन के साथ खेलते या उसके बच्चों की निगरानी करते। धीरे-धीरे चुनचुन के बच्चे बड़े हुए और चुनचुन
उन्हें उड़ना सिखाने लगी। छोटे चूज़े फुदक-फुदक कर माँ के साथ उड़ने का प्रयास करते
और एक दिन अपने पंख फैला कर मुक्त आकाश में उड़ गए पर चुनचुन ने वो बसेरा नहीं
छोड़ा। वह वहीं रह गई अपने छोटे मित्रों के साथ। शायद चुनचुन को भी उन बच्चों से उतना ही
लगाव था जितना उन्हें चुनचुन से।
©अनंता सिन्हा
२३.०४.२०२१
बहुत प्यारी कहानी .... पशु पक्षी इंसानों से ज्यादा वफादार होते हैं .... एक दो जगह टाइपिंग की गलतियाँ नज़र आ रही हैं ...एक बार स्वयं पढ़ कर सुधार लें .... पहला प्रयास अत्यंत सराहनीय ..
ReplyDeleteआदरणीया मैम, आपकी पहली-पहली टिप्पणी पा कर मुझे कितना आनंद मिला, मैं बता नहीं सकती । आपका आना ही मेरे लिए आशीर्वाद है । अत्यंत अत्यंत आभार इस उत्साहवर्धक सुंदर प्रतिक्रिया के लिए व आपको प्रणाम ।
Deleteअत्यंत सुंदर। पढ़ के क्या ध।सुं मज़ा आ गेला अपुन को😀
ReplyDeleteहार्दिक आभार मम्मा । लेखन की कला ही तुम्हारी देन है। अपनी हास्यास्पद और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार।
Deleteप्रिय अनन्ता, चिड़िया और बच्चों का रिश्ता अटूट भी होता है और अबूझ भी! किसको किसकी कितनी खुशी होती हैं या हो सकती है ये लिखना बड़ा मुश्किल है ! पर तुमने बहुत ही प्यारी , भावपूर्ण कथा लिखी है जिसमें बाल मनोविज्ञान पर बहुत अच्छे से प्रकाश डाला है! श्रेया और अन्य बच्चों के साथ नटखट चुनमुन का स्नेहिल रिश्ता और कहानी का सुखांत होना मन को आनंद से भर जाता है! मुझे भी अपने बचपन के वो दिन याद आ गए जब घर के एक कमरे, जिसमें फूस की छत थी, में से छत में बनाये गए गौरैया के घोंसले से चिड़िया के बहुत नन्हे बच्चे नीचे गिर जाते थे और ये मासूम पाखी अपनी लंबी चोंच फैलाकर मानो जीवन की आशा में हम बालकों की ओर देखते थे
ReplyDelete! तब हमारी दादी जी इन बच्चों के उपर शहतूत की पतली टहनियों से छील कर बनाये टोकरा रख देती थी जिससे कोई बिल्ली, कुत्ता या अन्य जानवर उन नन्हे पाखीयों को अपना ग्रास ना बना सकें! तब शुरू हो जाता था हमारी बच्चा पार्टी का उत्सव!!चिड़िया के उन नन्हे बच्चों को दाना खिलाकर कितना आनंद और खुशी मिलती थी और उनके स्वस्थ और बड़े होकर उड़ने पर जो रोना आता था वो बचपन की अविस्मरणीय पूँजी है! और उस पर दादी का समझाना कि देखो चिड़िया का विराट मन ----बच्चे खुशी से उड़ा दिये बिना रोये-----------बहुत याद आता है! पर, हम इंसान चिड़िया जैसे उदारमना कब हो पाए!!! जन्म जन्मांतर के मोहपाश से कब निकलना चाहते हैं!!
बहुत अच्छी प्रेरक कहानी के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और ढेरों प्यार, आशीष! यूँ ही सृजन पथ पर अग्रसर रहो❤❤💐💐🤗
आदरणीया मैम, आपने सदा ही सबसे अपनत्व- भरी और भावपूर्ण प्रतिक्रिया लिखी है। आपकी टिप्पणियाँ सदा मेरी रचनाओं को पूर्ण कर देतीं हैं और वह ख देती यहीं जो मैं नहीं ख पाती हूँ। आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया से आपके बचपन का अनुभव जान कर अपार आनंद मिला है । बहुत- बहुत आभार आपको एवं अनेकों बार प्रणाम ।
Deleteआपकी कहानी पढ़कर मन भर आया। बचपन में मैंने भी एक चिड़िया के बच्चे को इसी तरह से बचाकर पाला था। ब्रुक बॉण्ड चाय के खाली डिब्बे में रखता था उसे। तब तक रहा, जब तक वह बड़ा होकर (वयस्क चिड़िया बनकर) उड़ नहीं गया। आपने सुखांत कहानी लिखी है जिसमें बिछोह नहीं है, यह देखकर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteआदरणीय सर, आपकी इस सुंदर, भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत -अत्यंत आभार। आपके बचपन का अनुभव जान कर बहुत आनंद आया, क्या पता वह चिड़ा जहाँ भी उड़ा होगा, अपने साथियों को आपकी कहानी सुनाता होगा । पुनः आभार व आपको प्रणाम।
Deleteबहुत प्यारी कहानी|मुझे मेरे बचपन में ले गई|प्रकिती और बचपन के बीच एक अनूठा रिश्ता होता है जो हमें मानव से मानवता की ओर ले जाता है,और यह रिश्ता तुमने अपनी कहानी में बखूबी दर्शाया है|
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार माँ। तुम मेरी पहली श्रोता हो और तुम और नन्नन तो मेरी सारी कहानियाँ न जाने कितनी बार सुन चुकी हो। थानक यू सिर्फ टिप्पणी के लिए ही नहीं पर सब कुछ के लिए ।
DeleteAnanta your storytelling ability is simply superb. I relished my childhood memories. As a children we had an innate love of stories. Stories create magic and a sense of wonder at the world. Stories teach us about life, about ourselves and about others. Storytelling is a unique way to develop an understanding, respect and appreciation for nature.
ReplyDeleteKeep up the great work 👍 👏
आदरणीय अंकल जी, अपका आशीष अनमोल है। आपने सद्य ही बहुत उत्साहवर्धक और सुंदर टिप्पणियाँ दिन हैं । आज भी आपकी सुंदर और विस्तृत टिप्पणी पा कर आनंद आ गया। हार्दिक आभार व आपको प्रणाम ।
DeleteA most beautifully written story. The wonderful and intimate relationship between the bird and child is brought out in a very touching manner. That is why they say that animals and birds are most loyal friends/relations. The article speaks volumes about your talent Ananta. Keep it up and keep doing well.
ReplyDeleteआदरणीय अंकल जी, आपने सदा ही उत्साह बढ़ाया है । आपको रचना अच्छी लगी, इसके लिए अत्यंत आभार। अपका स्नेह अनमोल है मेरे लिए। कृपया अपना आशीष बनाए रखें और आते रहें ।
Deleteप्रिय अनंता, जितनी प्यारी आप है उतना ही प्यारा और मनमोहक कथा सृजन है आपका। सभी को बचपन की सैर करा लाई आप,उनमे मैं भी शामिल हूँ।
ReplyDeleteबालसुलभ मन के मनोविज्ञान को अच्छा पकड़ा है आपने,ढेरों शुभकामनायें आपको,जहाँ तक गलतियों की बात है वो लिखते-लिखते स्वयं सुधर जायेगी।
ढेर सारा स्नेह आपको,यूँ ही आगे बढ़ती रहें।
आदरणीया मैम, आपकी यह स्नेहिल और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए अनेकों आभार। आपको यह कहानी अच्छी लगी, मुझे बहुत खुशी हुई । वर्तनी की गलतियों को सुधार लिया है । एक बार पुनः आभार व आपको प्रणाम ।
Deleteप्रिय अनंता,
ReplyDeleteबिल्कुल तुम्हारी ही तरह मासूम,सरल और निश्छल कहानी लिखी है तुमने। प्रकृति और बच्चे एक जैसे होते है इसलिए उनकी परस्पर आत्मीयता सबसे खूबसूरत संबंधों का उदाहरण होती है।
प्रथम बाल कथा की बधाई और भविष्य के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं स्वीकार करो।
सदा खुश रहो
सस्नेह।
आदरणीया मैम, आपकी इस स्नेहिल और सुंदर प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार। आपका आशीष अनमोल है मेरे लिए। सदैव आतीं रहें। पुनः आभार व आपको प्रणाम।
Delete“अरे चुनचुन, हमलोग तुझे याद हैं !” स्नेहा ने पूछा, “हाँ, मुझे लगा तू हमें भूल जाएगी” केशव ने कहा। इसके उत्तर में चुनचुन फिर से चहक-चहक कर उन सब के पास मंडराने लगी, मानों उन सब का आभार मान रही हो और उसके बाद वहाँ से उड़ कर आम के पेड़ की एक ऊंची टहनी पर बैठ गई तब बच्चों ने देखा की चुनचुन ने अपना एक घोंसला बनाया था और उसने दो प्यारे-प्यारे चूज़े भी दिए थे।---सादगी से परिपूर्ण लेखन है। वाह...मखमली शब्दावली। खूब बधाई
ReplyDeleteआदरणीय सर,
Deleteआपकी इस उत्साह-वर्धक प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार। आपको यह कहानी इतनी अच्छी लगी, मुझे बहुत खुशी हो रही है । कृपया आते रहें व अपना स्नेह बनाए रखें। प्रणाम।
सुश्री अनंता जी, आपकी लिखी कहानी बाल-सुलभ व आजकल के युग में दुर्लभ है। एक ऐसी ही सोंच व कल्पनाशीलता हमें पुनः प्रकृति के करीब ला सकता है। अपनी इस छोटी सी उम्र में, एक वृहद व सकारात्मक प्रयास हेतु आप निश्चित रूप से बधाई की पात्र हैं । आशा है इस पीढ़ी में आप खुद को, एक प्रतिनिधि रचनाकार के रूप में स्वयं को स्थापित करने में अवश्य सक्षम होंगी।
ReplyDeleteआशीष व शुभकामनाएँ। ।।।
आदरणीय सर, आपकी इस आशीष- भरी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तो क्या आभार कहूँ। यही कहूँगी कि मैं जहाँ भी रहूँ और जो भी करूँ, आप सभी बड़ों का यह स्नेह और आशीष ही मेरा सुरक्षा कवच भी है और मेरी सफलता की सीढ़ी भी । अनेकों बार प्रणाम ।
Deleteप्रिय अनंता तुम्हारी कहानी बहुत प्यारी और पशु पक्षियों के प्रति तुम्हारे आत्मीय प्रेम से परिपूर्ण तथा सज्जित है,पढ़कर लगा नहीं कि आप अभी नवोदित कथाकार हो,बहुत खूब,बहत खूब,ऐसी सुंदर कहानियां लिखती रहो और अपने सुंदर मन को परिभाषित करती रहो,मेरी अनंत शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,अभी गौरैया दिवस पर मैने एक कविता पोस्ट की थी,जो कि मेरी बेटी और गौरैया की दोस्ती पर थी,बिलकुल तुम्हारी कहानी की तरह,लोगो को बड़ी पसंद आई,चाहना तो पढ़ना । तुम्हें अपनी जैसी लगेगी । तुम्हे ढेर सा प्यार और आशीष ।💐💐👍
ReplyDeleteआदरणीया मैम, आपकी इस अत्यंत स्नेहिल प्रतिक्रिया के आगे आभार के सारे शब्द छोटे हैं। आपको यह कहानी इतनी अच्छी लगी, मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं जरूर आऊँगी यह रचना पढ़ने के लिए और मैम यह आपकी उदारता है कि आप अपनी रचना को मेरी कहानी की तरह कह रहीं हैं । आप सब तो मेरे गुरुजन हैं, मुझे तो आप से बहुत कुछ सीखना है। मैं आपके ब्लॉग पर आपकी रचना पढ़ने आती रहूँगी । पुनः आभार व आपको प्रणाम ।
Deleteप्रिय अनंता, अरे! नहीं नहीं, बाल कहानीकार अनंता...बहुत सुंदर कहानी चुनचुन और स्नेहा...गजब लिखी है.. बच्चों तक पहुंचाई जानी चाहिए ये कहानी...बहुत खूब
ReplyDeleteआदरणीया मैम, कहानीकार होने में तो बहुत समय है पर हाँ आपका यह गजब मेरे लिए पुरस्कार है। अत्यंत आभार इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए। कृपया आते रहें व अपना स्नेह और आशीष बनाए रखें । आपको प्रणाम ।
DeleteStory is very nice and polite, the way of expression is good but try to keep length in short.....good effort
ReplyDeleteमेरे प्यारे अंकल जी, बहुत-बहुत आभार आपके प्रोत्साहन व मार्गदर्शन के लिए । आपके दिए मार्गदर्शन का ध्यान रखूँगी । कृपया आते रहें व अपना आशीष बनाए रखें ।
DeleteOh so beautiful 💖
ReplyDeleteतुम मुझे मेरे बचपन में खींच ले गईं, कुछ ऐसे ही प्यार से हम गौरिया को घर ले आते थे. तुमने जिस सरलता से इस कहानी को लिखा है, सच में प्रशंसनीय है।
हमारी अनंता तुम्हें ढेर प्यार और आशीर्वाद ❣️
मेरी प्यारी आंटी, आपकी स्नेहिल टिप्पणी इतने दिनों बाद अपने ब्लॉग पर पाकर मन आनंदित है । आपको कहानी पसंद आई,इसके लिए बहुत- बहुत आभार। अपका आशीष अनमोल है मेरे लिए । पुनः अनेकों बार आभार ।
Deleteबहुत ही प्यारी कहानी। हमें तो बस चुनचुन में अनंता और अनंता में चुनचुन दिखाई दे रही है। ऐसे ही लिखते रहें। साधुवाद और बधाई। इतनी सुंदर कहानी पढ़ाने का आभार भी।
ReplyDeleteआदरणीय सर, आपकी इस सुंदर स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार के सारे शब्द छोटे हैं । बहुत -बहुत आभार इस प्यारी सी टिप्पणी के लिए । आपका आशीर्वाद सदैव मिले, यही कामना है । अनेकों बार प्रणाम ।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमासूम लेखनी की मासूम रचना .. वही हनुमान कूद के पहले वाली :) :)
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