आवेश से चक्कर काट कर,
मेरी कक्षा में प्लेन उड़ाते हो।
बड़े हो कर पायलट बनना चाहते हो?😃
जानती हूँ तुम्हें अनेकाग्रता का रोग है,
स्थाई अस्थिरता तुम्हारे जीवन का भोग है।
जीत सकते हो इसे जो मन में विश्वास धरो,
अर्जुन सा लक्ष्य साध, यदि अथक प्रयास करो।
आओ तुम्हें विज्ञान का चमत्कार दिखाऊं,
प्लेन, फाइटर जेट और रॉकेट का भेद बताऊं।
बड़े हो कर हर स्वप्न सच करना,
श्रम के बल से गगन चूमना।
तुम क्रोध में आ कर ,
पूरी कक्षा सर उठाते हो,
झलकती वह वेदना,
जो बता नहीं पाते हो।
पास हो कर भी,
नहीं हैं पिता,
तुम्हें पीट-पीट कर उतारती,
माँ अपनी खिन्नता।
तुम्हारी दिव्यांगता,
जिसे कोई नहीं स्वीकारता।
घर में मिली उपेक्षा,
तुम्हारे जीवन की परीक्षा।
होती हूं मैं भी आहत,
देख तुम्हारे कोमल मन की छटपटाहट।
काश तुम्हारा भाग्य बदल पाती,
संसार की सारी खुशियां,
तुम्हारे जीवन में भर पाती।
जीवन पथ पर घिस - घिस कर,
तुम्हें चंदन होना है।
संघर्षों की अग्नि में तप,
काया को कंचन होना है।
तुम पढ़ते पढ़ते असहज हो जाती हो,
जाने किस से घबराती हो?!
अकारण सहेलियों पर हाथ उठाती हो,
फिर खुद रोने लग जाती हो!
दुःखी हो समय के आघात से,
कोरोना के भारी वज्रपात से।
एक लाइलाज बीमारी
तुम्हारे परिजनों को लील गई।
तूफान सी आई महामारी,
तुम्हारा बचपन छीन गई।
"ये बच्ची मानसिक दिव्यांग है"
अपनी ही धुन में है रहती।
प्रियजनों की पहचान नहीं,
वियोग - दुख नहीं सहती।
कह कर तुम्हें सताते हैं,
समाज की अपंगता दिखाते है।
पढ़ लिख कर डॉक्टर बनना
हर बड़ी बीमारी से लड़ना।
एक दिन यह विश्व तुमसे जीवनदान पाएगा,
आज भले ठुकराता हो,
कल गर्व से अपनाएगा।
एक तुम हो,
मुझे मेरा बचपन याद दिलाती हो,
पंद्रह घंटे पढ़ कर भी,
एक उत्तर याद नहीं कर पाती हो।
विषय समझे बिना,
पूरी किताब जो रट जाती हो,
अरे! तुम मनुष्य हो,
क्यूं तोता बनना चाहती हो।
कहती हो मैं मूर्ख हूं,
भाषा नहीं जानती।
शब्दों को दूर,
अक्षर नहीं पहचानती।
यह अक्षर मुझे डराते हैं,
नाच- नाच कर सताते हैं।
पर तुम वह नहीं देखती,
जो मैं देख पाती हूं।
अपनी कल्पनाओं में अंतरिक्ष बांधती,
रंगों और तूलिका से सारा संसार नापती।
स्नेहिल हो, आज्ञाकारी हो,
सबकी सहायता करती हो,
कला के साथ-साथ
स्वभाव की भी धनी हो।
पूरी किताब रट जाना,
तुम्हारी मूर्खता नहीं, मजबूरी है।
क्यूंकि परीक्षाओं में,
रट कर लिखना ज़रूरी है।
ऐसे तो दिव्यांग दूर,
सकलांग भी न पढ़ पाएगा।
कोई शिक्षक भी,
पूरी पुस्तक नहीं रट पाएगा।
काश तुम्हारे लिए परीक्षा के नियम बदल पाती,
क्यूंकि तभी सफल समावेशी शिक्षा,
जब की जाए समावेशी परीक्षा।
मेरे प्रिय विद्यार्थियों,
समाज तुम्हें बांधेगा,
रिपोर्ट कार्ड के अंकों से,
आंकेगा तुम्हें,
तन के अपूर्ण अंगों से।
कलाकार नहीं, सी. ए बनो,
यह समझाएगा।
तुम अपंग हो, अनुपयोगी हो,
बार बार दोहराएगा।
अपनी संकीर्णता छुपाने हेतु,
तुम्हें अपूर्ण बताएगा।
पर तुम खुद को उनकी नहीं,
मेरी नज़रों से देखना।
जीवन के अंधेरे को,
अपनी रोशनी से चीरना।
तिरस्कार सह कर भी,
स्नेह से परिपूर्ण हो,
बिखराव में भी पूर्ण हो,
तुम स्वयं में संपूर्ण हो।
तुम अनमोल हो, विशेष हो ,
जीवटता की संतान हो,
कामना मेरी है यही,
तुमसे देश की पहचान हो।
©अनंता सिन्हा
बहुत ही सुंदर बहुत ही प्रेरक ।
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