Saturday, August 9, 2025

इकलौती संतानें! - रक्षाबंधन विशेष



तुम कहते हो, हमारे भाग्य बड़े महान हैं।
माता - पिता के लाड़ले,  हम इकलौती संतान हैं।
मुंह -मांगा खिलौना हमें मिल जाता,
दादी का सारा बटुआ हमारे हिस्से है आता।
हम दूर हैं रोज की कट- कट से,
बंटवारे के झंझट से।

तो चलो देखें, कौन भाग्यवान है,
सुख के तराज़ू में, किसका पलड़ा बलवान है?

बचपन में हमारे मित्र,अपने भाई बहनों संग खिलखिलाते ।
हम किसी गैजेट पर आँखें गड़ाते।
घर सूना न लगे, इसीलिए टीवी का वॉल्यूम बढ़ाते थे।
मन सूना न लगे, 
सोशल मीडिया पर "वर्चुअल मित्र" बनाते थे।
मन लगाने का कोई तो सामान है,
तो क्या अगर बंदा और वेबसाइट, दोनों अनजान हैं?!

माँ - पापा हमारा कमरा, खिलौनों से सजाते,
पर हम उनसे कभी खेल न पाते।
जिनके भाई-बहन थे, वो आपस में ही खेल बनाते।
झूठ - मूठ का झगड़ा कर,
 एक दूसरे को सताते - हंसाते।

हम दरवाज़े बैठे आस लगाते।
माँ- पापा घर आएं,
तभी तो कुछ खेल पाएंगे ।
काश उन्हें आने में देर न हो,
नहीं तो थक कर दोनों सो जायेंगे।

राखी और भाई- दूज तीरों से चुभते थे,
हमारे लिए त्योहार नहीं, सिर्फ अवकाश होते थे।
लोग परिवार संग खुशियाँ मनाते,
हम फिल्म देखने जाते,
या अपना होमवर्क निपटाते।
गणित के सवालों से अपना माथा फोड़ते,
किताब में सर घुसा, अपनी किस्मत कोसते।
हमारे सहपाठी राखी और उपहारों पर इतराते,
हमें इकलौती बुला कर, खूब चिढ़ाते। 

हम में से अधिक भले, 
दादा- दादी के साथ पले।
एकाकी फिर भी नहीं मिटी 
पर हमें संस्कार मिले।

हम राखी पर पूजा दिवस मनाते थे,
मातृ - पितृ दिवस साथ-साथ मन जाते थे।
भगवान के साथ, अपने मात- पिता पूज लेते,
उन्हें राखी बांध उनकी सुरक्षा- कामना कर लेते।

माथा हमारा तब चकराता,जब राखी बांधने पर,
 कान्हा जी से, कोई उत्तर न आता।
काश...! काश कि कान्हा जी हमारे साथ हंस- बोल पाते,
काश लड्डू खिलाते समय, अपना मुख ही खोल पाते।
काश कि एकाकी से प्रभु त्रान दें,
हमें भी भाई- बहन का वरदान दें।

भैया  की पुरानी किताब लेकर स्कूल जाती,
दीदी कि अलमारी से, उसके नए कपड़े चुराती।
मेरी छोटी बहन, अपनी बक-बक से मेरा सर खा जाती,
माँ की मार से बचने हेतु, मेरे पीछे छुप जाती।
मेरा भाई मुझे बिन-बात पर सताता ,
पर मेरी गलतियां छिपा कर, मुझे  बचाता। 

बचपन बीता, हम हुए बड़े,
आज भी उसी मोड़ पर हैं खड़े।
हमारे मित्र भाई बहनों की शादी पर खुशियां मनाते हैं,
मासी, मामा  चाचा बुआ बन हर्षाते हैं।
हम आज भी इंस्टाग्राम चलाते हैं,
रील्स देख कर मन बहलाते हैं।

हमारे मुंहबोले भाई बहन 
अपने में मस्त हैं,
फोन भी नहीं उठा पाते,
काम में इतने व्यस्त हैं।
उनकी दिनचर्या पर 
हमारा नहीं अधिकार है,
आखिर उनका अपना काम काज
उनका अपना परिवार है।

काश हम संयुक्त परिवार के बंधन न तोड़ते,
काश कि माँ पापा थोड़ा हमारा सोचते।
"तुमसे हमारी ममता पूरी है" कह कर
हमें अधूरा न छोड़ते।
काश,  भगवान ने हमारा अनुरोध सुना होता,
काश माँ पापा ने  एक बच्चा गोद लिया होता।
घर खिलौनों से न भर कर,
खेलने वाला साथी उपहार दिया होता,
तो रक्षाबंधन अवकाश न हो कर,
हमारे लिए भी त्योहार होता।

अब बताओ क्या ऐसा बचपन और जीवन तुम्हें गवारा है?!
तुम्हारे भाई- बहन बिना, तुम्हारा गुजारा है?!
यह सच है कि थोड़ी नोक-झोक घर- घर का किस्सा है,
पर गौर से देखो, सारी खुशियाँ उन्हीं घरों का हिस्सा है।
क्या करोगे उन खिलौनों का,
जिससे खेल न पाओगे?
परिवार न हो,  मकान किसके लिए बनाओगे?!


हमारी अगली पीढ़ी रिश्ते पहचान न पाएगी,
मामा मासी चाचा बुआ किसे कह कर बुलाएगी?!
नित्य कि एकाकी हमारी सबसे बड़ी चुनौती है,
इकलौती संतान होना आशीष नहीं, पनौती है।

©अनंता सिन्हा 












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